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___{120) अर्थैरापादितैर्गुळ हिंसयेतस्ततश्च तान्। पुष्णाति येषां पोषेण शेषभुग्यात्यधः स्वयम्॥ वार्तायां लुप्यमानायामारब्धायां पुनः पुनः। लोभाभिभूतो निःसत्त्वः परार्थे कुरुते स्पृहाम्॥ कुटुम्बभरणाकल्पो मन्दभाग्यो वृथोद्यमः। श्रिया विहीनः कृपणो ध्यायञ्छ्वसिति मूढधीः॥ एवं स्वभरणाकल्पं तत्कलत्रादयस्तथा। नाद्रियन्ते यथापूर्वं कीनाशा इव गोजरम्॥ तत्राप्यजातनिर्वेदो म्रियमाणः स्वयंभृतैः। जरयोपात्तवैरूप्यो मरणाभिमुखो गृहे॥ आस्तेऽवमत्योपन्यस्तं गृहपाल इवाहरन्। आमयाव्यग्रदीप्ताग्निरल्पाहारोऽल्पचेष्टितः ॥ वायुनोत्क्रमतोत्तारः कफसंरुद्धनाडिकः। कासश्वासकृतायासः कण्ठे घुरघुरायते॥ शयानः परिशोचद्भिः परिवीतः स्वबन्धुभिः । वाच्यमानोऽपि न ब्रूते कालपाशवशं गतः॥ एवं कुटुम्बभरणे व्यापृतात्माऽजितेन्द्रियः। म्रियते रुदतां स्वानामुरुवेदनयाऽस्तधीः॥
___ (भा.पु. 3/30/10-18) जो व्यक्ति हिंसा आदि क्रूर कर्मों द्वारा धन अर्जित कर अपने परिवार आदि का * पोषण करता है, उसकी (स्वयं उसके परिवार में) दुर्गति इस प्रकार होती है:- कुटुम्बियों क के भोजन से बचे हुए टुकड़े भी उसे कठिनाई से मिलते हैं। जीविका के लिए किये गये
विविध उद्योगों के बार-बार निष्फल हो जाने पर मनुष्य, लालच में पड़ कर, चोरी आदि
दुष्कर्म करने लग जाता है। परिवार के परिपालनार्थ वह अभागा जो उपाय करता है वही ॥ निष्फल हो जाता है, तब वह परिवार के पालन की चिन्ता से गहरी सांसें लिया करता है। # पालन-पोषण करने में उसके असमर्थ हो जाने पर, स्त्री-पुत्र आदि उसका वैसे ही अनादर
करने लगते हैं जैसे किसान बूढ़े बैल का। पहले जिनको खिला कर खाता था, आज उन्हीं का मोहताज होने, बुढ़ापे के कारण कुरूप हो जाने और मौत के मुंह में पैर लटकाये रहने
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(वैदिक/बाह्मण संस्कृति खण्ड/34