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{150} तृष्णां छिन्धि भज क्षमा जहि मदं पापे रतिं मा कृथाः, सत्यं ब्रह्यनुयाहि साधुपदवीं सेवस्व विद्वजनम्। मान्यान्मानय विद्विषोऽप्यनुनय प्रच्छादय स्वान्गुणान्, कीर्तिं पालय दुःखिते कुरु दयामेतत्सतां लक्षणम्॥
(नी.श. 69) लालच त्यागना, सहनशील बनना, पाप कर्मों से दूर रहना, मन से भी बुरा विचार # न करना, सच बोलना, महापुरुषों के मार्ग पर चलना, विद्वानों की सेवा-शुश्रूषा करना, बड़ों ॥ 4 का आदर करना, शत्रुओं के साथ भी प्रेम का व्यवहार करना, स्वाभिमान की रक्षा करना, ॐ दीन-दुखियों पर दया करना, यही सब सत्पुरुषों/सज्जनों के लक्षण हैं।
{151} नवनीतोपमा वाणी करुणाकोमलं मनः। धर्मबीजप्रसूतानामेतत्प्रत्यक्षलक्षणम् ॥
__ (प.पु. 1/134/31-32) मक्खन जैसी वाणी और करुणा से युक्त कोमल मन- उस व्यक्ति के प्रत्यक्ष लक्षण हैं जो धर्म-रूपी बीज से उत्पन्न हुए हैं (अर्थात् धर्मात्मा हैं)।
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{152}
त्रीण्येव तु पदान्याहुः सतां व्रतमनुत्तमम्। न चैव दुह्येद् दद्याच्च सत्यं चैव सदा वदेत्॥
(म.भा. 3/207/93-94) श्रेष्ठ पुरुष तीन ही पद (मुख्य बातें) बताते हैं-(1) किसी से द्रोह न करे, (2) दान करे और (3) सदा सत्य ही बोले। ये ही श्रेष्ठ पुरुषों के सर्वोत्तम व्रत हैं।
{153} सर्वलोकहितासक्ताः साधवः परिकीर्तिताः।
(ना. पु. 1/16/30) साधु/सज्जन -महात्मा लोग सभी के हित के लिए तत्पर रहते हैं।
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अहिंसा कोश/45]