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अहिंसा नाम सर्वभूतेषु अनभिद्रोह: । चक्षुर्मनोवाक्शरीरकर्मणां न्यासः । कर्मेन्द्रिय- बुद्धीन्द्रियाणां संयमः । अहंकारकामक्रोधलोभ-उपनिवर्तनम् ॥ (सांख्याचार्य हारीत का वचन, उद्धृत लक्ष्मीधर भट्ट रचित
'कृत्यकल्पतरु' का 'मोक्षकाण्ड' प्रकरण, द्रष्टव्यः उदयवीर शास्त्री - कृत 'प्राचीन सांख्य सन्दर्भ', पृ. 192)
अहिंसा का अर्थ है- समस्त प्राणियों के प्रति द्रोह का न होना । अहिंसा का अर्थ हैनेत्र, मन, वचन व शरीर से उन प्रवृत्तियों को नहीं करना जिनसे किसी प्राणी को कष्ट/पीड़ा हो, तथा कर्मेन्द्रियों व ज्ञानेन्द्रियों की उन प्रवृत्तियों पर संयम / अंकुश रखना जो अन्य प्राणी को अनिष्ट हो। अहिंसा का अर्थ है - प्राणी- पीड़क अहंकार, काम, क्रोध व लोभ (आदि मानसिक) विकारों का त्याग ।
(ना. पु. 1/33/76) पर- पीड़ा / क्लेश के
सभी प्राणियों को क्लेश न हो - इस प्रकार व्यवहार रखना, या कार्यों से दूर रहना- यही 'अहिंसा' है जिसे सन्त महापुरुषों ने योग-सिद्धि देने वाली बताया है। (अर्थात् करुणा, अनुकम्पा, दया, परोपकार, क्षमा, दया दान, प्राण-दान, अभय-दान, आदि -आदि कार्य प्राणियों की पीड़ा / क्लेश को दूर करते हैं, अतः ये सभी 'अहिंसा' के अन्तर्गत आते हैं ।)
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सर्वेषामेव भूतानामक्लेशजननं हि यत् । अहिंसा कथिता सद्भिर्योगसिद्धि-प्रदायिनी ॥
न करना ।
(37.g. 372/4) अहिंसा धर्म ही उत्तम धर्म है | अहिंसा का अर्थ है - प्राणियों को पीड़ा देने का कार्य
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[ वैदिक / ब्राह्मण संस्कृति खण्ड / 52
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भूतापीडा ह्यहिंसा स्यात्, अहिंसा धर्म उत्तमः ॥