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हिंसा का व्यापक परिभाषित स्वरूप
{168}
उद्वेगजननं हिंसा सन्तापकरणं तथा ॥ रुक्कृतिः शोणितकृतिः पैशुन्यकरणं तथा । हितस्यातिनिषेधश्च, मर्मोद्घाटनमेव च ॥
सुखापन्हुतिः संरोधो वधो दशविधा च सा ।
。
(अ.पु. 372/5-7)
(अहिंसा का अर्थ है-हिंसा न करना ।) हिंसा में दश प्रकार के कार्य आते हैं, अत: वह दश प्रकार की है। वे दस कार्य हैं- (1) किसी को उद्विग्न करना (घबराहट पैदा करना), (2) सन्ताप (मानसिक पीड़ा) देना, (3) रोग (स्वास्थ्य - हानि) करना, (4) खून बहाना, (आघात आदि से क्षत-विक्षत करना), (5) पैशुन्य (चुगली, परोक्ष - निन्दा), (6) हित (अभीष्ट कार्यसिद्धि आदि) में व्यवधान डालना या उसे नष्ट करना, (7) गुप्त रहस्य को प्रकट करना, (8) सुख में बाधा / रुकावट डालना, (9) गमनागमन आदि में रुकावट डालना, तथा ( 10 ) वध करना । [ इसी प्रकार, उक्त हिंसक कार्यों से निवृत्ति रूप अहिंसा भी 10 प्रकार की सिद्ध हो जाती है ।]
हिंसा / अहिंसा के भेद
{169}
वितर्का हिंसादयः कृत-कारितानुमोदिता लोभ - क्रोध- मोह पूर्वका मृदुमध्याधिमात्रा दुःखाज्ञानानन्तफलाः ॥
(यो.सू. 2/34)
हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य, परिग्रह- ये पांच 'वितर्क' ( योग-साधना में
प्रतिकूलता पैदा करने वाले कार्य ) हैं । वे पांचों वितर्क तीन-तीन प्रकार के होते हैं । (1)
कृत-स्वयं किए गए। (2) कारित - प्रेरणा देकर दूसरों से कराये गए । (3) अनुमोदित
दूसरों के हिंसा इत्यादि वितर्कों का अनुमोदन करना । अपनी अनुमति से हिंसा आदि का
समर्थन करना ही अनुमोदित वितर्क हैं। ये वितर्क लोभ-क्रोध-मोहपूर्वक होते हैं । इन सब
मृदु, मध्य, अधिमात्र ( अत्यधिक ) - ये तीन प्रकार होते हैं। ये वितर्क अनन्त दुःख एवं अनन्त अज्ञान रूप फल प्रदान करने वाले हैं । अर्थात् ये हिंसा इत्यादि वितर्क सदैव दुःख एवं अज्ञान ही प्रदान करते हैं, कभी भी इनसे सुख तथा ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती ।
[ हिंसा के 81 भेद:- कृत, कारित व अनुमोदित-ये हिंसा के तीन भेद हुए, इनमें से प्रत्येक के लोभ-जनित, क्रोध-जनित व मोह-जनित, इस प्रकार तीन-तीन भेद होकर नौ भेद हुए। इनमें से प्रत्येक के मृदु, मध्य व तीव्र- इस प्रकार तीन-तीन भेद होकर 27 भेद हुए। इनमें से भी प्रत्येक के तीन-तीन भेद होते हैं-जैसे मृदु के तीन भेद-मृदुमृदु, मध्यमृदु, तीव्रमृदु, मध्य के तीन भेद -मृदुमध्य, मध्यमध्य, तीव्रमध्य, तीव्र के तीन भेद- मृदुतीव्र, मध्यतीव्र तीव्रतीव्र, इस प्रकार कुल 81 भेद होते हैं] [द्रष्टव्य: यो. सू. 2/34 पर व्यास- भाष्य ]
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纸,
अहिंसा कोश / 53]