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[हिंसा का अधार्मिक भावात्मक परिवार]
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{160} यथाऽऽवृतः स वै ब्रह्मा तमोमात्रा तु सा पुनः। पुत्राणां च तमोमात्रा अपरा निःसृताऽभवत्॥ प्रतिस्रोतात्मकोऽधर्मो हिंसा चैवाशुभात्मिका।
(ब्र.पु. 2/9/30-31) जज्ञे हिंसा त्वधर्माद् वै निकृतिं चानृतं च ते। निकृत्यनृतयोर्जज्ञे भयं नरक एव च॥ माया च वेदना चापि मिथुनद्वयमेतयोः। मयाजज्ञेऽथ वै माया मृत्यु भूतापहारिणम्॥ वेदनायां ततश्चापि जज्ञे दुःखं तु रौरवात्॥ मृत्योर्व्याधिर्जराशोकक्रोधासूया विजज्ञिरे। दुःखोत्तराः स्मृता ह्येते सर्वे चाधर्मलक्षणाः॥ तेषां भार्याऽस्ति पुत्रो वा सर्वे ह्यनिधनाः स्मृताः। इत्येष तामसः सर्गों जज्ञे धर्मनियामकः॥
(ब्र.पु. 2/9/63-67) ___ [यही कथा मार्कण्डेय पुराण- 47/29-32 में तथा पद्मपुराण के सृष्टि खण्ड (-अ.3/191-194) में भी वर्णित है।]
ब्रह्मा की मानसी सृष्टि के अन्तर्गत तामसी सृष्टि का प्रसार इस प्रकार हुआ:- पहले अधर्म और हिंसा उत्पन्न हुए। (30-31)
अधर्म का अशुभ हिंसा से विवाह हुआ और इन दोनों के निकृति (शठता/माया/छल, # कपट) नामक पुत्री तथा अन्त (असत्य) नामक पुत्र हुए। निकृति ने अनृत के साथ विवाह किया और भय व नरक दो पुत्रों को तथा माया व वेदना- इन दो पुत्रियों को जन्म दिया। भय ने माया से विवाह कर मृत्यु को तथा नरक ने वेदना से विवाह कर दुःख को जन्म दिया। मृत्यु से व्याधि, जरा (वृद्धावस्था) , शोक, क्रोध, असूया (ईर्ष्या) उत्पन्न हुए। (63-67)
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अहिंसा कोश/49]