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%%% %% % {139} दयादरिद्रहृदयं वचः क्रकचकर्कशम्। पापबीजप्रसूतानामेतत्प्रत्यक्षलक्षणम्॥
__(प.पु. 1/134/32-33) दया से दरिद्र (रहित) हृदय होना और आरी के समान कर्कश वाणी होना-ये उन # पुरुषों के प्रत्यक्ष लक्षण हैं जो पाप रूपी बीज से उत्पन्न (अर्थात् पापात्मा) हैं।
{140} हिंसा च हिंस्रजन्तूनां सतीनां पतिसेवनम्।
(ब्र.वै.पु. 3/35/94) जिस प्रकार सती-पतिव्रता स्त्रियों का बल पति-सेवा होती है, वैसे ही हिंसक स्वभाव वाले प्राणियों का बल 'हिंसा' होती है।
{141} अनार्यता निष्ठरता क्रूरता निष्क्रियात्मता। पुरुषं व्यञ्जयन्तीह लोके कलुषयोनिजम्॥
(म.स्मृ. 10/58) इस लोक में अनार्यता, निष्ठरता, क्रूरता, क्रिया (यज्ञ-सन्ध्यावन्दनादि कार्य-) की # हीनता, ये सब नीच योनि में उत्पन्न पुरुष का परिचय करा देती हैं अर्थात् इन गुणों से युक्त में मनुष्य अधम कोटि का है, ऐसा जानना चाहिये।
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{142} हिंसा बलं खलानां च तपस्या च तपस्विनाम्।
(ब्र.वै.पु. 3/35/88) दुष्टों का बल 'हिंसा' होती है और तपस्वियों का बल उनका तप होता है।
{143}
अतीवरोषः कटुका च वाणी नरस्य चिह्नं नरकागतस्य॥
___ (प.पु. 1/134/131) अत्यन्त रोष से युक्त होना, कटु वाणी बोलना यह उस व्यक्ति के चिन्ह हैं जो नरक से आया हुआ है।
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अहिंसा कोश/41]