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{111} हिंस्रा भवन्ति क्रव्यादाः।
(म.स्मृ. 12/59) हिंसक (सदा हिंसा करने वाले बहेलिया, शिकारी आदि) मनुष्य दूसरे जन्म में क्रव्याद (कच्चे मांस खाने वाले बिलाव आदि) होते हैं।
{112}
देवत्वं सात्त्विका यान्ति मनुष्यत्वं च राजसाः। तिर्यक्त्वं तामसा नित्यमित्येषा त्रिविधा गतिः॥
(म.स्मृ. 12/40) स्थावराः कृमिकीटाश्च मत्स्याः सर्पाः सकच्छपाः। पशवश्च मृगाश्चैव जघन्या तामसी गतिः॥ हस्तिनश्च तुरंगाश्च शूद्रा म्लेच्छाश्च गर्हिताः। सिंहा व्याघ्रा वराहाश्च मध्यमा तामसी गतिः॥ रक्षांसि च पिशाचाश्च तामसीषूत्तमा गतिः॥
___ (म.स्मृ. 12/42-44) सात्त्विक (सत्त्वगुण का व्यवहार करने वाले)व्यक्ति देवत्व को, राजस (रजोगुण * का व्यवहार करने वाले) मनुष्यत्व को और तामस (तमोगुण यानी हिंसा व क्रूरता से * सम्पन्न व्यक्ति) तिर्यक्त्व (पशु-पक्षी, वृक्ष, लता-गुल्म आदि की योनि) को प्राप्त करते हैं; + ये तीन प्रकार की गतियां हैं। स्थावर (वृक्ष, लता, गुल्म, पर्वत आदि अचर), कृमि (सूक्ष्म * कीड़े), कीड़े, मछली, सर्प, कछुवा, पशु, मृग; ये सब जघन्य (हीन)तामसी गतियां है।
हाथी, घोड़ा, शूद्र, निन्दित म्लेच्छ, सिंह, बाघ और सूअर-ये मध्यम तामसी गतियां हैं। राक्षस और पिशाच-ये उत्तम तामसी गतियां हैं।
{113} अतो वै नैव कर्तव्या प्राणिहिंसा भयावहा। वियोज्य प्राणिनं प्राणैस्तथैकमपि निर्घणः॥
. (वि. ध. पु. 3/252/13) एक भी प्राणी को उसके प्राणों से रहित करने वाला निर्दय कहा जाता है, अतः भयावह प्राणि-हिंसा कभी नहीं करनी चाहिए। EXEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE
अहिंसा कोश/31]