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{71)
आर्तप्राणप्रदा ये च, ये च हिंसाविवर्जकाः। अपीडकाश्च भूतानां ते नराः स्वर्गगामिनः॥
___(वि. ध. पु. 2/117/18) आर्त (दुःखी/ पीड़ित) व्यक्तियों को प्राण-दान देने वाले, हिंसा से निवृत्त रहने * वाले और प्राणियों को कभी पीड़ा नहीं देने वाले व्यक्ति स्वर्ग जाते हैं।
{72} रूपमैश्वर्यमारोग्यमहिंसाफलमश्रुते।
___ (म.भा.13/7/15, बृ.स्मृ. 1/71; वि. ध. पु. 3/237/26) अहिंसा धर्म के आचरण से रूप , ऐश्वर्य और आरोग्यरूपी फल की प्राप्ति होती है।
{73} रूपमव्यंगतामायुर्बुद्धिं सत्त्वं बलं स्मृतिम्। प्राप्तुकामैनरैहिँसा वर्जिता वै महात्मभिः॥
(म.भा.13/115/6) जो सुन्दर रूप, पूर्णांगता, पूर्ण आयु, उत्तम बुद्धि, सत्त्व , बल और स्मरणशक्ति प्राप्त # करना चाहते थे, उन महात्मा पुरुषों ने (अभीष्ट-प्राप्ति के लिए) हिंसा का सर्वथा त्याग कर ॐ दिया था। (अर्थात् हिंसा-त्याग या अहिंसा से अभीष्ट फल प्राप्त किया जा सकता है।)
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अहिंसैका सुखावहा।
(म.भा. 5/33/52,विदुरनीति 1/52) एकमात्र 'अहिंसा' (धर्मचर्या) ही सुख देने वाली है।
___{75} ये वा पापं न कुर्वन्ति कर्मणा मनसा गिरा। निक्षिप्तदण्डा भूतेषु दुर्गाण्यतितरन्ति ते॥
(म.भा.12/110/7; वि. ध. पु. 2/122/13) जो मन, वाणी और क्रिया द्वारा कभी पाप नहीं करते हैं और किसी भी प्राणी को है शारीरिक हिंसा से कष्ट नहीं पहुंचाते हैं, वे संकट से पार हो जाते हैं।
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