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{80} अहिंसा सत्यमक्रोधः, तपो दानं दमो मतिः। अनसूयाऽप्यमात्सर्यमनीा शीलमेव च॥ एष धर्मः कुरुश्रेष्ठ कथितः परमेष्ठिना। ब्रह्मणा देवदेवेन अयं चैव सनातनः॥ अस्मिन् धर्मे स्थितो राजन् नरो भद्राणि पश्यति।
___ (म.भा.12/109/ पृ. 4705) __ अहिंसा, सत्य, अक्रोध, तपस्या, दान, मन व इन्द्रियों का संयम,विशुद्ध बुद्धि, किसी के दोष न देखना, किसी से डाह और जलन न रखना तथा उत्तम शीलस्वभाव का * परिचय देना-ये धर्म हैं। इसका परमेष्ठी ब्रह्मा ने उपदेश किया था और यही सनातन धर्म है।
इस धर्म में जो स्थित है, उसे ही कल्याण का दर्शन होता है।
{81} अजातशत्रुरस्तृतः।
(ऋ. 8/93/15) अजातशत्रु (निर्वैर) कभी किसी से हिंसित (विनष्ट) नहीं होता।
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{82} लोकद्वये न विंदन्ति सुखानि प्राणिहिंसकाः। ये न हिंसन्ति भूतानि, न ते बिभ्यति कुत्रचित्॥
(प.पु. 3/31/36) जो प्राणि-हिंसा करते हैं, वे इहलोक और परलोक दोनों जगह, सुख से वंचित होते हैं। जो प्राणि-हिंसा से विरत हैं, उन्हें कहीं भय नहीं होता।
{83} सर्वहिंसानिवृत्ताश्च साधुसंगाश्रये नराः। सर्वस्यापि हिते युक्तास्ते नराःस्वर्गगामिनः॥
(प.पु. 2/96/25) जो व्यक्ति सभी प्रकार की हिंसाओं से निवृत्त हैं, साधु (सज्जन) लोगों की संगति भ # करते हैं और जो सभी के हित-साधन (परोपकार) में संलग्न रहते हैं, वे स्वर्ग में जाते हैं।
वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/22