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{57} अहिंसा सत्यवचनमानृशंस्यमथार्जवम्॥ अद्रोहो नाभिमानश्च हीस्तितिक्षा दमः शमः। धीमन्तो धृतिमन्तश्च भूतानामनुकम्पकाः॥ अकामद्वेषसंयुक्तास्ते सन्तो लोकसाक्षिणः।
__(म.भा.3/207/91-93) जो अहिंसा , सत्यभाषण, कोमलता, सरलता (दया), अद्रोह, अहंकार का त्याग, लज्जा, सहनशीलता, इन्द्रिय-निग्रह,शान्ति व धैर्य-इन्हें धारण करते हैं और समस्त प्राणियों पर अनुग्रह करते हैं, वे संत/सज्जन ही सम्पूर्ण लोकों के लिये प्रमाणभूत /आदर्शभूत होते हैं।
{58} अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः॥
(यो.सू. 2/35) . योगी में अहिंसा की दृढ़ स्थिति हो जाने पर, उस योगी के समीप आने पर, परस्पर सभी प्राणी अपनी जन्म-जात शत्रुता का परित्याग कर देते हैं, अर्थात् जाति, देश, काल,
समय की सीमा से ऊपर उठ कर अहिंसा का पालन करने वाले योगी में जब यह अहिंसा म की भावना दृढ़ स्थिति को प्राप्त कर लेती है, तब उस योगी के समीप में सहज व स्वाभाविक विरोध वाले सर्प-नेवला, गज-सिंह इत्यादि जीव भी वैर व द्वेषभाव को छोड़ कर मित्रभाव से विचरण करते हैं।
{59} दाक्षिण्यं रूपलावण्यं सौभाग्यमपि चोत्तमम्। धनं धान्यमथारोग्यं धर्मं विद्यां तथा स्त्रियः॥ राज्यं भोगांश्च विपुलान्, ब्राह्मण्यमपि चेप्सितम्। अष्टौ चैव गुणान्वापि दीर्घ जीवितमेव च॥ अहिंसकाः प्रपद्यन्ते यदन्यदपि दुर्लभम्।
___ (वि. ध. पु. 3/268/3-5) ___(1) दाक्षिण्य (चातुर्य आदि), (2) रूप-लावण्य, (3) उत्तम सौभाग्य, (4) ॐ धन-धान्य, आरोग्य, धर्म, (5) विद्या व स्त्रियां, (6) राज्य, (7) विपुल काम-भोग, (8) * अभीप्सित ब्राह्मणत्व- इन आठ गुणों को तथा दीर्घ जीवन को एवं अन्य दुर्लभ पदार्थों को * अहिंसक प्राप्त कर लेता है।
%% %%%%%% %%%%%%%%%%%%%%%%%%%、 वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/16
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