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अहिंसाचरण का लौकिक, पारलौकिक व आध्यात्मिक लाभ
{53} अहिंसकः समः सत्यो धृतिमान् नियतेन्द्रियः। शरण्यः सर्वभूतानां गतिमाप्नोत्यनुत्तमाम्॥
(म.भा. 5/245/20) जो व्यक्ति अहिंसक, समदर्शी, सत्यवादी, धैर्यवान्, जितेन्द्रिय और सम्पूर्ण प्राणियों को शरण देनेवाला होता है, वह अत्यन्त उत्तम गति पाता है।
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यो न हिंसति सत्त्वानि मनोवाकर्महेतुभिः॥ जीवितार्थापनयनैः प्राणिभिर्न स बद्ध्यते।
__ (म.भा. 12/277/27-28) जो व्यक्ति मन, वाणी, क्रिया तथा अन्य कारणों द्वारा किसी भी प्राणी की जीविका का अपहरण करके उसकी हिंसा नहीं करता, उस (अहिंसक) को दूसरे प्राणी भी वध या . बन्धन के कष्ट में नहीं डालते।
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अनसूया ह्यहिंसा च सर्वेऽप्येते हि पापहाः।
___ (ना. पु. 1/15/136) परदोष-दर्शन की अप्रवृत्ति तथा अहिंसा- ये पाप को नष्ट करती हैं।
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न्यायोपेता गुणोपेताः सर्वलोकहितैषिणः॥ सन्तः स्वर्गजितः शुक्लाः संनिविष्टाश्च सत्पथे। सर्वभूतदयावन्तस्ते शिष्टाः शिष्टसम्मताः॥
__ (म.भा. 3/207/87-88) जो न्यायपरायण, सद्गुणसम्पन्न, सब लोगों का हित चाहनेवाले, हिंसारहित और सन्मार्ग पर चलनेवाले हैं, वे श्रेष्ठ पुरुष स्वर्गलोक पर विजय पाते हैं। जो सभी प्राणियों के प्रति दया-भाव रखते हैं, वे ही शिष्ट पुरुष माने गये हैं।
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अहिंसा कोश/15]