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{31} एतद् रूपमधर्मस्य भूतेषु हि विहिंसता।
(म.भा.3/33/33) प्राणियों का प्राण-हरण रूप यह हिंसा कार्य अधर्म का स्वरूप ही है।
{32}
अहिंसा सकलो धर्मः, हिंसाऽधर्मस्तथाऽहितः।।
___ (म.भा.12/272/20) अहिंसा ही 'सम्पूर्ण धर्म' है, और हिंसा अहितकारी व अधर्म है।
अहिंसाः शिव-धर्म की आधार
{33} अथ धर्माः शिवेनोक्ताः शिवधर्मागमोत्तमाः। हिंसादिदोषनिर्मुक्ताः क्लेशायासविवर्जिताः। सर्वभूतहिताः शुद्धाः सूक्ष्मायासमहत्फलाः॥
(प.पु. 2/69/1-2) भगवान् शिव ने धर्मों का कथन किया है, और वे धर्म शिव-धर्म के शास्त्रों में प्रमुखता से वर्णित हैं। ये धर्म हिंसा आदि दोषों से सर्वथा रहित हैं, इनके अनुष्ठान में क्लेश भी नहीं होता,
ये सभी प्राणियों के लिए हितकारी हैं, दोष-रहित होने से शुद्ध हैं तथा ये थोड़े ही परिश्रम से * महान् फल को देने वाले हैं।
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आराध्यते महादेवः सर्वदा सर्वदायकः। जीवहिंसा न कर्तव्या विशेषेण तपस्विभिः॥
(स्कं. पु. 1/(3)/11/69) सब कुछ देने वाले शिव की सदा आराधना करनी चाहिए। ( इस धर्म के आराधक) तपस्वियों द्वारा जीव-हिंसा विशेष रूप से वर्ण्य है।
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अहिंसा कोश/9]