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શુભસંગ્રહ-ભાગ પાંચમો
१८-सा
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सोते भारतको मेरे कृष्ण, जगा दे आ जा। तान वंशीकी वही, फिरसे सुना दे आ जा॥ कंसके जुल्मको बरबाद किया था तुमने । प्यारे ! गीताका वही रङ्ग जमा दे आ जा॥ सारथी बनके भी, भक्तोंके ही हमगह रहे । भक्तिकी बेलि वही दिलसे बढा दे आ जा ॥ पूतना मारने आई थी उसे मारा था । फूट फैली हैं जो घर-घरमें भगा दे आ जा॥ टेर सुनते ही बचाया था, ग्राहसे गजको । हिन्दवालोंकी बची लाज बचा दे आ जा॥ दाने दानेको मुहताज हैं बन्दे तेरे । बिगडी किस्मतको रहम करके बनादे आ जा॥ बढाके चीरको, थी लाज द्रोपदीकी रखी । मातु भारतकी रही शान, रखा दे आ जा॥ नाश गौओंका हुआ, बैलोंकी मुहताजी है । दिलसे प्यारी उन्हीं गौओंको चरा दे आ जा॥ "हकीम” आ के करो हिन्दका उद्धार प्रभो । वीरताका वही फिर पाठ पढा दे आ जा ।।
("५ मे माथी २ययिता:-श्री० भसार म 'भीम')
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