________________
( ३४ )
आदित्यादि पुरुषों में ब्रह्मत्व का उपदेश दिया तब राजा अजातु शत्रु ने प्रतिवाद करते हुये कहा कि 'यो वै बालाके एतेषां पुरुषाणां कर्ता यस्य चैतत्कर्म स वेदितव्यः' इस कथन पर संशय होता है कि राजा ने जिवाधिष्ठेिता प्रकृति का उल्लेख किया है, या ब्रह्म का । पूर्वपक्ष तो प्रकृति को उपस्थित करता है किन्तु सिद्धांततः ब्रह्म पक्ष को ही निश्चित करते हैं।
सप्तम् अधिकरण वृहदारणयक में याज्ञवल्क्य मैत्रे यो संवाद में याज्ञवल्कय मैत्रेयी से कहते हैं-'न वा अरे पत्युः कामाय पतिः प्रियो भवति आत्मनस्तु कामाय पतिः प्रियो भवति' इस पर संशय होता है कि यहाँ आत्मा शब्द जीववाची है, या परमात्मवाची जीधवाची का निराकरण करते हुये, परमात्मवाची रूप में ही सिद्धांत निश्चित करते हैं।
अष्टम अधिकरण इस अधिकरण में विचार करते हैं कि जगत की समवायिकारण प्रकृति तथा निमित्त कारण ब्रह्म हैं अथवा दोनों ही कारण ब्रह्म है, इम पक्ष का निराकरण करते हुये निश्चित करते हैं समस्त कारण ब्रह्म ही है।
द्वितीय अध्याय प्रथम अध्याय में ब्रह्मपरक विवादास्पद वेदान्त वाक्यों में समन्वय का प्रति पादन किया गया। अब इस अध्याय में श्रति स्मृति के अविरोध का प्रतिपादन करेंगे। इस अध्याय में प्रथम और द्वितीय पादों को अधिकरण रचना सुस्पष्ट नहीं है किमी प्रकार उमको संकलन कर यहाँ प्रस्तुत करते हैं।
प्रथम अधि करण यहाँ संशय करते हैं कि प्रकृतिकारणता प्रतिपादक कपिल की स्मृति से, शुद्ध ब्रह्म कारणता प्रतिपादक श्रुतियों का समन्वय संभव है या नहीं। पूर्वपक्ष का कथन है कि कपिल स्मृति मनु आदि म्मृतियों की तरह कर्म में उपयोगी नहीं है। केवल मोक्षमार्ग में उपयोगी है अतः सांख्य का वैदिक वाक्यों से समन्वय संभय नहीं है, इस पर स्वमत कहते हैं, कि जैसे 'अहं सर्वस्य जगतः प्रभवः प्रलपस्तथा, इत्यादि शुद्ध ब्रह्म कारणता को प्रति पादिका स्मृतियां श्रुति तत्व का ही विश्लेषण करती हैं उसी प्रकार सांख्य स्मृति से वैदिक वाक्यों का समन्वय हो सकता है । कपिलादि महर्षियों ने सांख्य आदि स्मृतियों का निर्माण शुद्ध ब्रह्मवाद के अयोग्य हीन अधिकारियों को आत्म