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संस्कृत-साहित्य का इतिहास
आनना होगा कि इसमें उस काल की बोलचाल की भाषा का सच्चा रूप नहीं मिल सकता । हाँ, इसमें भी कोई सन्देह नहीं हो सकता कि ऋग्वेद की भाषा उस समय की बोलचाल की भाषा से अधिक भिन्न भाषा नहीं है। धागे दी हुई सारिणी भारतीय भाषाओं के विकास को सूचित करती है, जो उन्हें नाना अवस्थाओं में से निकल कर प्राप्त हुआ। आर्य भाषाओं के विकास को सूचित करने वाली सारिणी
बोलचाल बाली वैदिक बोलियाँ
बाद की संहिता
writer trafe aास्क
मध्यकालीन संस्कृत
रामायण,
महाभारत
और पाणिनी
खेद
"कान्यायन और पतञ्जलि
लिति ष
लिखित पत्र आवा
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लिखि चाली
पाली
अशोक के शासन लेख
नवकों की प्राकृत भाषाएँ
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