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संस्कृत और आधुनिक भाषाएँ
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है । भारतीयों में नामों के पर्याय तथा संक्षिप्त रूप व्यवहार में दाने की बड़ी प्रवृत्ति पाई जाती है ।
किन्तु यह परिणाम नहीं निकालना चाहिए कि भारतीयों में ऐतिहासिक बुद्धि का अभाव था । इतिहास के क्षेत्र में पुराणों और अनेक ग्रन्थों के अतिरिक्त निश्चित तिथियों से युक्त अनेक शिलालेख विद्यमान हैं। ज्योतिष के ग्रन्थकारों ने अन्य समाप्ति तक की निश्चित तिथियाँ दी हैं।
(४) संस्कृत और आधुनिक भाषाएँ
संस्कृत शब्द सब से पहले पाणिनि को अष्टाध्यायी में देखने को मिलता है । यह सब से पहले ऐतिहासिक महाकाव्य रामायण में भी भाया है। इसका व्युत्पत्ति-लभ्य अर्थ है- 'एकत्र रक्खा हुआ या चिकना - चुपड़ा किया हुधा या परिमार्जित'। इसके सुकाबिले पर प्राकृत का अर्थ है - 'स्वाभाविक, अकृत्रिम' । यही कारण है कि प्राकृत शब्द से भारत की बोलचाल की भाषा समझी जाती है, जो भाषा के मुख्य साहित्यिक रूप से पृथक है ।
वैदिक काल में श्रार्थ - भाषा का नाम वैदिक भाषा था । श्राजका की भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन सिद्ध करता है कि ये सब किसी एक ही स्रोत से निकली हुई भिन्न-भिन्न धाराएं हैं। अतः अपनी भाषा के इतिहास के लिए हमें विद्यमान सब से पुराने नमूने तक पहुँच कर जो ऋग्वेद में मिलता है, नीचे की ओर इसके इतिहास- चिह्नों का पता लगाना होगा | और क्योंकि सम्पूर्ण ऋग्वेद पथ-बद्ध है, अत यह
१. मेरे एक शास्त्री मित्र ने मुझे अमृतसर से पत्र लिखा, जिसके किनारे पर लिखा 'सुधासरस:' । दूसरी बार लिखा 'पीयूषतडागात्' । दोनों ही नाम अमृतसर के पर्याय हैं । २. इस प्रकरण में अधिक जानने के लिए ७० से ७४ तक के खराड देखने चाहिएं ।
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