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संस्कृत और आधुनिक भाषाएं ११ है। भारतीयों में नामों के पर्याय तथा संक्षिप्त रूप म्यवहार में जाने की बड़ी प्रवृत्ति पाई जाती है।
किन्तु यह परिणाम नहीं निकालना चाहिए कि भारतीयों में ऐतिहासिक बुद्धि का अभाव था। इतिहास के क्षेत्र में पुराणों और अनेक अन्यों के अतिरिक्त निश्चित तिथियों से युक्त अनेक शिलालेख विद्यमान हैं। ज्योतिष के ग्रन्थकारों ने अन्य समाप्ति तक की निश्चित तिथियाँ दी हैं ।
(४) संस्कृत और आधुनिक भाषाएँ संस्कृत शब्द सब से पहले पाणिनि की अष्टाध्यायी में देखने को मिलता है। यह सब से पहले ऐतिहासिक महाकाग्य रामायण में भी प्राया है। इसका ग्युत्पत्ति-जन्य अर्थ है---'एकत्र रक्खा हुना या चिकनाचुपड़ा किया हुश्रा या परिमार्जित' । इसके मुकाबिले पर प्राकृत का अर्थ है-'स्वाभाविक, अकृत्रिम'। यही कारण है कि प्राकृत शमन से भारत की बोलचाल की भाषा समझी जाती है, जो भाषा के मुख्य साहित्यिक रूप से पृथक है।
वैदिक काल में प्रार्य-भाषा का नाम वैदिक भाषा था। भाजकल की माषाभों का तुलनात्मक अध्ययन सिद्ध करता है कि ये सब किसी एक ही स्त्रोत से निकली हुई भिन्न-भिन्न धाराएँ हैं। अत: अपनी भाषा के इतिहास के लिए हमें विद्यमान सब से पुराने नमूने तक पहुँच कर, जो ऋग्वेद में मिलता है, नीचे की ओर इसके इतिहास-चिह्नों का पता लगाना होगा । और क्योंकि सम्पूर्ण ऋग्वेद पद्य-पद्ध है, अत. यह
१. मेरे एक शास्त्री मित्र ने मुझे अमृतसर से पत्र लिखा, जिसके किनारे पर लिखा 'तुधासरसः। दूसरी बार लिखा 'पीयूषतडागात्' । दोनों ही नाम अमृतसर के पर्याय हैं । २ इस प्रकरण में अधिक जानने के लिए ७० से ७४ तक के खण्ड देखने चाहिए।