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संस्कृत में ऐतिहासिक तत्व का अभाव
(1) पश्चिम में इतिहास का जो अर्थ जिया जाता है, भारतीय लोग इतिहास का यह अर्थ नहीं लेते थे । श्रार्य लोगों का ध्यान सारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा की ओर लगा हुआ था। संस्कृति और सभ्यता को उद्धति में सहायता करने वाले को छोडकर किलो अन्य राजा का महापुरुष का था अपना इतिहास लिखने में श्रार्य लोगों की श्रभिरुचि नहीं थी । भारतीयों के बौद्धिक और प्राध्यात्मिक जीवन के विकास की एक-एक मंजिल का जैसा सावधानतापूर्ण उल्लेख संस्कृतसाहित्य में मिलता है, वैसा जगत् के किसी अन्य साहित्य में नहीं । १
(२) भारतीय मनोविज्ञान की और परिस्थितियों की विशेषताएँ-कर्म का और भाग्य का सिद्धान्त, दैनिक हस्ताक्षेपों में मन्त्रयन्त्र में तथा जादू में विश्वास, वैज्ञानिक मनोवृति का अभाव -- ऐसी बातें हैं, जो एक बड़ी सीमा तक इतिहास के अभाव का कारण हैं जैन और बौद्ध भी ऐसे हो विश्वास रखते थे ।
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यहाँ तक कि
(३) १२०० ई० तक भारत में राजनीतिक घटनाओं की गति से भी शायद कोई सर्वप्रिय बनने वाली बात पैदा नहीं हुई ।
(४) भारतीयों में राष्ट्रीयता ( Nationality ) के भावों का न होना भी इसका एक बड़ा कारण है। सिकन्दर की विजयों का प्रभाव चिरस्थायी नहीं हुआ और विदेशी आक्रमणों ने भी भारतीयों में राष्ट्रोंयता के भावों को जन्म नहीं दिया। मुसलमानों को अपने श्राक्रमणों में कदाचित् इसीलिए सफलता मिली कि भारतीय राजा-महाराजा विदेशी आक्रमणकारियों को उतनी घृणा की दृष्टि से नहीं देखते थे, जितनी घृणा की दृष्टि से वे एक दूसरे को देखते थे ।
( २ ) भारत के साधारण कोग समय की या देश की दृष्टि से दूर हुए राजाओं के इतिहास और प्रशस्ति-काव्यों में अभिरुचि नहीं रखते थे । यही कारण है कि श्र यश की कामना रखने वाले कवियों ने
१. इस युक्ति के आधार पर हम कह सकते हैं कि भारतीयों में ऐतिहासिक बुद्धि की भाव नहीं था प्रत्युत वे इतिहास का अर्थ ही और लेते थे।