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उसने एक लम्बी साँस ली। नाक और होठों पर पसीने की बूंदें चहचहा आयीं। आँचल से पसीना पोंछा। "उफ्, कितनी गर्मी लग रही हैं!" मानो अपने-आप से कहा। अन्दर छाती अब भी धड़क रही थी।
"अब तो रामनवमी बीत चली, बस समझो कि गरमी आ गयी।" कहकर पास खड़े खस के पंखे को उठाकर दण्डनायक जी अपने दोनों के बीच हवा करने
लगे।
दण्डनायिका कुछ बोली नहीं। पंखा झलना रोककर दण्डनायक ने पूछा, "वह इस तरफ़ आया तो नहीं?" ''कौन।" ''वही वामशक्ति ।
''नहीं...वह इधर क्यों आने लगा? कई महीने बीत गये, उसका तो कोई अता-पता भी नहीं।" कहते हुए चामब्बे जैसे भीतर-ही-भीतर घबरा गयी।
“बहुत अचठा हुआ। तुमने बुलवाया तो नहीं?" । "नहीं"-उसने गला ठीक करते हुए कहा। "अगर कहीं खुद आ जाए तो पास भी फटकने न देना।" 'बात क्या है? आज मालिक ने उस पण्डित की बात क्यों उठायी?"
''उसके बारे में इत्तला मिली है कि किसी यड़ें प्रभावशाली परिवार की भलाई के लिए वह आनेवाली अमानमा दिन प्रांगर कोई जन मारा।। ऊप दिन वह उस अंजन में जो दृश्य देखेगा उस पर उसका भविष्य निहित होगा। यह सूचना उसने अपने किसी विश्वस्त व्यक्ति को दी है।" ___"इस तरह उसके गुप्त व गौण समाचार प्रकट करनेवाला भला विश्वस्त कैसे हांगा."
"वास्तव में वह विश्वस्त नहीं, फिर भी विश्वस्त की तरह रहकर समाचार संग्रह करनेवाला हमारा गुप्तचर है।"
"वह प्रभावशाली परिवार कौन है? कुछ पता चला?" ___ "अभी पता नहीं चला, पर आज नहीं तो आठ-दस दिनों के भीतर पता चल · ही जाएगा। उसके बाद उस परिवार की क्या हालत होगी, भगवान ही जाने!"
ऐसा क्यों होना चाहिए? अपने भावी कष्ट का परिहार कराने के लिए मार्गदर्शन की इच्छा से यदि कोई उसके पास जाए तो इसमें ग़लत क्या है?"
__ "सारी बात मालूम होने पर ही तो निणय हो सकेगा कि सही क्या है और गलत क्या है । एक वामाचारी का सारा भविष्य इस अंजन को नगाकर देखने मात्र से यदि उज्ज्वल हो सकता हो तो वह साधारण घात नहीं होगी। इसलिए अब और भी अधिक जानकारी पाने की प्रतीक्षा की जा रही है।"
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: .13