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[१] ॥ गुणानुराग कुलकम् ॥ सयलकल्लाणनिलयं,
नमिऊण तित्थनाहपयकमलं । परगुणगहणसरूवं,
भणामि सोहग्गसिरिजणयं ॥१॥ समस्त कल्याण का निवास स्थान है जिनके चरण कमल ऐसे भगवान श्री तीर्थकर प्रभु को प्रणाम करके सौभाग्य दायक तथा संपत्तिदायक परगुणानुराग के स्वरूप का वर्णन करता हूं ॥१॥ उत्तम गुणाणुरायो, निवसइ
. हिययंमि जस्स पुरिसस्स। शातित्थयरयायो,
न दुल्लहा तस्स ऋद्धिो ॥२॥ जिन पुरुषों के हृदय में उत्तम पुरुषों का अनुराग विद्यमान है उन्हें तीर्थङ्कर पद तक भी कोई सिद्धि दुर्लभ नहीं है । अर्थात् गुणानुरागी राजा, वासुदेव, बलदेव, चक्रवर्ती और तीर्थङ्कर तक हो सकते हैं ॥ २ ॥