Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
View full book text
________________
30
6. विशेषावश्यकभाष्य-स्वोपज्ञवृत्ति - विशिष्ट ज्ञान के भण्डार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण की यह विशेषावश्यकभाष्य की स्वोपज्ञटीका अन्तिम कृति है। क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यकभाष्य की रचना प्राकृत भाषा में की थी, अतः संस्कृत भाषा के जानकार पाठकों के लिए इस प्राकृत ग्रन्थ पर स्वोपज्ञ-संस्कृतटीका के लेखन का कार्य शुरु किया था तथा इस कृति के लेखनकार्य के मध्य जब षष्ठ गणधर मण्डित की शंकाओं का समाधान चल रहा था, उसी दौरान भाष्यकार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण का देहावसान हो गया था, अतः कोट्याचार्य ने अवशिष्ट-टीका की रचना पूर्ण की। अवशिष्ट-टीका का परिमाण तेरह हजार सात सौ श्लोक-परिमाण है।
भाष्यकार की यह स्वोपज्ञटीका सरल, सुबोध, सुगम्य तथा विविध विषयों की जानकारी से परिपूर्ण थी। टीका का प्रारम्भिक रूप भाष्य की गाथाओं पर आधारित था। कहा जाता है कि जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण की टीका के समान ही इस अपूर्ण टीका की पूर्तिरूप कोट्याचार्य ने भी जो टीका लिखी है, वह भी सरल एवं स्व-परकल्याण-गुणयुक्त है।"
7. झाणज्झयण (ध्यानशतक) - प्रस्तुत कृति का प्राकृत नाम झाणज्झयण (ध्यानशतक) है। हरिभद्रसूरि ने इसका निर्देश 'ध्यानशतक' के नाम से किया है। इसके कर्ता को लेकर कुछ विद्वान् सन्देह करते हैं, लेकिन कुछ प्रमाणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रस्तुत रचना जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण की ही है।
प्रस्तुत कृति का विषय 'ध्यान' है। ध्यान का स्वरूप एवं उसके लक्षण आदि के साथ इसमें चार प्रकार के ध्यानों का वर्णन किया गया है1. आर्तध्यान 2. रौद्रध्यान 3. धर्मध्यान 4. शुक्लध्यान। इनमें से दो शुभ तथा दो अशुभ होते हैं। दो संसारवर्द्धक हैं, तो दो संसारमुक्ति के कारण हैं। इसमें चारों ध्यानों के स्वामी, लक्षण, स्वरूप, आलम्बन, अनुप्रेक्षा आदि विषयों पर चिन्तन किया गया है। इसी
57 निर्माप्य षष्ठगणधरवक्तव्यं किल दिवंगताः पूज्याः।
अनयोगमार्य (ग) देशिकजिनभद्रगणि क्षमाश्रमणाः ।। तानेव प्रणिपत्यातः परमवि शिष्ट विवरणं क्रियते। कोट्टार्यवादिगणिना मन्दधिया शक्तिमनपेक्ष्य ।।
. – विशेषावश्यकभाष्य स्वोपज्ञवृत्ति, गाथा – 1863.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org