Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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आगमसार में लिखा है कि दूसरों के प्रति भयंकर क्रूरतम परिणामों का चिन्तन करना, अर्थात् हिंसा आदि करने के बाद आनन्द मानना रौद्रध्यान कहलाता है। क्रोधादि तीव्र कषाय ही रौद्रध्यान का मुख्य कारण है, अर्थात् रागद्वेष (क्रोध) और अज्ञान की अतितीव्रता होना अथवा तीव्रकोटि के रागद्वेष। जिस प्रकार राग'' अशुभ-शुभ मुख्यतः दो प्रकार का होता है, उसी प्रकार द्वेष भी आठ प्रकार का होता है।80
नयदृष्टि की अपेक्षा से रागद्वेष के अन्तर्गत क्रोधादि कषायों का समावेश हो जाता है, जैसे- 'नैगम एवं संग्रह नय' में क्रोध, मान, द्वेषरूप तथा माया-लोभ रागरूप हैं। . व्यवहारनय' की अपेक्षा से विशेषावश्यकभाष्य 2 एवं कषायपाहुड में क्रोध, मान और माया को द्वेषरूप तथा मात्र लोभ को ही रागद्वेष माना गया है।
'ऋजुसूत्रनय' की अपेक्षा से विशेषावश्यकभाष्य 4 में मान्यता यह है कि क्रोध द्वेषरूप है, जबकि मान, माया, लोभ, प्रसंग के अनुरूप कभी रागरूप, तो कभी द्वेषरूप में परिणत होते हैं, क्योंकि प्रस्तुत नय वर्त्तमानग्राही है।
'शब्दनय' की दृष्टि से विशेषावश्यकभाष्य 5 में लिखा है कि शब्दादि तीन नयों की अपेक्षा से मान, माया और लोभ को सम्मिलित किया है। जब ये स्व-उपकार से जुड़े होते हैं, तब रागरूप, किन्तु जब ये परघाती के रूप में परिणत होते हैं, तब ये द्वेषरूप बन जाते हैं।
'ध्यानशतक' में रौद्रध्यान के स्वरूप का विवेचन करते हुए कहा गया है कि स्वार्थ, द्वेष, ईर्ष्या, हिंसा, शत्रुता, लोभ इत्यादि के हेतुओं से व्यक्ति के चित्त में अहितकर, अयोग्य एवं क्रूरतम विचारों, अध्यवसायों का प्रादुर्भाव होना ही रौद्रध्यान है।
इस ध्यान को करने वाला ध्यानी हिंसा, झूठ, चोरी, धनरक्षा में लीन, छेदन-भेदन आदि प्रवृत्तियों में राग रखता है। चुगली करना, अनिष्टसूचक वचन बोलना, रूखा
79 आगमसार, पृ. 169. 79 प्रवचनसार, गाथा-66-69. 80 ईर्ष्या रोषो दोषो द्वेषः परिवादमत्सरासूयाः । __ वैरप्रचण्डनाद्या नैके द्वेषस्य पर्यायाः ।। - प्रशमरति-प्रकरण, श्लोक- 19. 81 विशेषावश्यकभाष्य, गाथा- 2969. 82 वही, गाथा- 2970. 89 कषायचूर्णि, अध्ययन 1, गाथा- 21, सूत्र- 89. ७ विशेषावश्यकभाष्य, गाथा- 2971-2974. 85 वही, गाथा- 2975-2977.
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