Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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तनाव के कारण -
वर्तमान युग में विश्व की प्रमुख समस्याओं में तनाव एक प्रमुख कारण है। आज विश्व में ढेरों सुख-सुविधाएँ होने के बावजूद भी मनुष्य चिन्तित, उदास एवं दुःखी है। सब कुछ होने पर भी मानसिक अशान्ति से पीड़ित है। पूर्ववर्ती मानव इतना चिन्तित नहीं था, जितना आज है, क्योंकि पहले इच्छाएँ सीमित थीं, तो उलझनें भी कम थीं और जब इच्छाएँ, आकांक्षाएँ सीमित थीं, तो खर्च भी कम थे। जैसे-जैसे सुख-सुविधाएँ बढ़ती गई, वैसे-वैसे दुविधाएँ भी बढ़ती गई और साथ-ही-साथ संतोष, खुशी को नष्ट कर देने वाली चिन्ता भी बढ़ती गई। महोपाध्याय ललितप्रभसागरजी ने कहा है -"एक चिन्ता हजार चिताओं से भी बदतर है। चिता एक बार जलाती है, पर चिन्ता जिन्दगी में हजार बार जलने को मजबूर करती है।
वर्तमान युग की भौतिकवादी जीवन-दृष्टि के कारण व्यक्ति की इच्छाओं, आकांक्षाओं में असीमित वृद्धि हुई है और आज का मानव उन इच्छाओं की पूर्ति के प्रयत्न में ही संलग्न है। प्रथमतः तो, असीम इच्छाओं, आकांक्षाओं के कारण ही मानव-मन तनावग्रस्त है, साथ ही इन इच्छाओं की पूर्ति के प्रयत्न और उनमें उपस्थित बाधाओं के कारण उसकी तनावग्रस्तता और अधिक बढ़ गई है।
जैन-आगम उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि 'इच्छाएँ आकाश के समान अनन्त हैं –“इच्छाहु आगास समा अणन्तिया” और उनकी पूर्ति सीमित जीवन और सीमित साधनों से सम्भव नहीं है। 'पुनः, उन पूर्ति के साधनों को उपलब्ध करने में जो बाधाएँ आती हैं, वे भी तनाव का कारण बन जाती हैं। यही कारण है कि आज विश्व का सबसे समृद्ध माना जाने वाला देश यूनाइटेड स्टेटस् ऑफ अमेरिका (USA) सबसे अधिक तनावग्रस्त है।
तनाव हमारी मानसिक-एकाग्रता को भंग कर देता है, जीवन की शान्ति एवं प्रसन्नता हमसे छीन लेता है। हमारे भीतर पनप रही व्यर्थ की चिन्ताएँ तनाव का
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