Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji

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Page 479
________________ 452 ध्यान के पुरातात्त्विक साक्ष्य एवं ऐतिहासिक विकास-क्रम - - जहाँ तक पुरातात्त्विक साक्ष्यों का प्रश्न है, हमें मोहनजोदड़ो-हड़प्पा से जो सीलें प्राप्त हुई हैं, उनमें ध्यान-साधना करते हुए व्यक्तियों का अंकन है। इससे यह सिद्ध होता है कि आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व भी मानव ध्यान-साधना करता था। भारत की निवृत्ति-परक परम्परा की जो जैन, बौद्ध, औपनिषदिक-धाराएँ हैं, उनके पूर्व-पुरुष भी ध्यान-साधनाएँ करते थे, ऐसे पुरातात्त्विक-प्रमाण उपलब्ध होते हैं। आगे, ध्यान-साधना की परम्पराएँ निम्नांकित छह विभागों में बांटी गई हैं1. आगम तथा आगमिक-व्याख्यायुग – (ई.पू. 5 वीं शती से 7 वीं शती तक) 2. हरिभद्र-युग – (ईसा की 8 वीं शती से 10 वीं शती तक) 3. ज्ञानार्णव और योगशास्त्र का युग-(ईसा की 11 वीं शती और 12 वीं शती तक) 4. तान्त्रिक-युग – (ईसा की 10 वीं शती से 16 वीं शती तक) 5. यशोविजय-युग – (ईसा की 17 वीं शती से 19 वीं शती तक) 6. आधुनिक युग – (ईसा की 20 वीं शर्ती से 21 वीं शती तक) तत्पश्चात्, जैनध्यान-साधना तथा बौद्धध्यान-साधना के एक तुलनात्मकअध्ययन का वर्णन किया गया है। उसके अन्तर्गत यह लिखा है कि जैनसाधनापद्धति और बौद्धसाधना-पद्धति -ये दोनों पद्धतियाँ यह मानकर चलती हैं कि राग-द्वेष और तज्जन्य मोह एवं तृष्णा ही दुःख का कारण हैं। ये विकल्परूप हैं। संक्षेप में, यह समझना है कि दोनों ही पद्धतियों में ध्यान का अन्तिम चरण तो चित्त की निर्विकल्पता ही है। तदनन्तर पातंजल-ध्यान की योग-साधना तथा जैनध्यानसाधना की तुलना का विस्तार से वर्णन किया गया है और इस अध्याय के अन्त में तान्त्रिक-साधना और जैनध्यान-साधना की चर्चा करते हुए हमने लिखा है कि जैनध्यान-साधना पर तंत्र का प्रभाव अति प्राचीनकाल से ही देखा जाता है। जैनपरम्परा में प्राणायाम की साधना को कोई महत्त्व नहीं दिया गया, किन्तु परवर्तीकाल में तान्त्रिक-साधना के प्रभाव से जैन-परम्परा में न केवल प्राणायाम को स्थान मिला, किन्तु उसमें ईडा, पिंगला और सुषुम्ना के जागरण और. षट्चक्र-भेदन की बात भी आ गई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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