Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
View full book text
________________
158 सं. सुखलाल सिंघवी 159 सं. डॉ. सागरमल जैन
सन् 2007 सन् 1991
160
सं. डॉ. सागरमल जैन
सन् 2008
सन् 2002
161 162 163
सं. डॉ. सागरमल जैन सं. डॉ. सागरमल जैन । सं. डॉ. सागरमल जैन
सन् 1988
सेन्टर, शाहीबाग, अहमदाबाद तत्त्वार्थसूत्र पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, 6 संस्करण जैन साधना पद्धति में पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी ध्यान जैनधर्म-दर्शन एवं प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर संस्कृति सागर जैन विद्याभारती पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी हरिभद्र का अवदान - पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी हरिभद्रसूरि का पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी समय-निर्णय जैन धर्म में तांत्रिक पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी साधना गुणस्थानसिद्धांत : एक पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी विश्लेषण अभिनंदन ग्रंथ : डॉ. पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी सागरमल जैन जैन, बौद्ध और गीता प्राकृत भारती संस्थान, जयपुर का साधना मार्ग जैनधर्म के प्रभावक जैन विश्वभारती लाडनूं, द्वि.संस्करण
ले. डॉ. सागरमल जैन
सन् 1997
165
ले. डॉ. सागरमल जैन
सन् 1996
166
ले. डॉ. सागरमल जैन
सन् 1998
167
ले. डॉ. सागरमल जैन
सन् 1982
168 सं. साध्वी संघमित्रा
सन् 1986
आचार्य
सन् 1973 सन् 2000
169 सं. सुजुको ओहिरा 170 सं. डॉ. सुदर्शनलाल जैन 171 कृत सिद्धसेनगणि 172 ले. सौभाग्यमुनि 173 सं. मुनि समदर्शीजी 174 सोमदेवसूरि (लेखक) 175 रचित आ. सोमदेव 176 संकलनकी सुलोचनाश्री
सन् 2004 सन् 1963
ध्यानस्तव
भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन द्रव्यसंग्रह (नेमिचन्द्राचार्य) सिद्ध सरस्वती प्रकाशन, वाराणसी तत्त्वार्थाधिगमसूत्र हीरालाल रसिकलाल कापड़िया चिन्तनामृत श्री अम्बागुरु शोध संस्थान, उदयपुर योगशास्त्र ऋषभचन्द्र जौहरी किशनलाल जैन, दिल्ली यशस्तिलकचम्पू निर्णयसागर प्रेस, मुम्बई योगमार्ग
सिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था महावीरजी प्रेम तेज-पुष्प स्वाध्याय मुद्रक गौतम आर्ट प्रिन्टर्स, ब्यावर स्तोत्र सरिता मोक्षशास्त्र (विमल भारतवर्षीय अनेकांत विद्वत् परिषद,वाराणसी. प्रश्नोत्तर) टीका
भारतवर्षीय अनेकांत विद्वत् परिषद,वाराणसी । ध्यान का स्वरूप । पंटोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर
वी.सं. 2507
177 टीका स्याद्वादमती माताजी
सन् 1998
रयणसार
सन् 1998
178 अनु. स्याद्वादमती माताजी । 178 ले. डॉ. हुकुमचंद भारिल्ल
सन् 2009
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org