Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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व्यक्ति के आध्यात्मिक-विकास में ध्यान -
ध्यान न केवल तनावमुक्ति का साधन है, अपितु वह व्यक्ति के आध्यात्मिकविकास का भी साधन है, क्योंकि जहाँ विकल्प होते हैं, वहाँ आध्यात्मिक-विशुद्धि सम्भव नहीं होती है।
- इच्छा, राग-द्वेषादि चित्त को अशान्त बनाते हैं और अशान्त चित्त व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में बाधक होता है। भगवान् बुद्ध ने एक उदाहरण दिया था कि यदि पानी गंदला हो और उसमें लहरें उठ रही हों, तो तल में गहराई अथवा नीचे रहा हुआ कुछ भी दिखाई नहीं देता है, किन्तु इसके विपरीत, यदि पानी निर्मल
और शान्त हो, तो उसके तल में रही वस्तु भी स्पष्ट रूप से प्रतीत होती है। इस प्रकार, विषय-वासनारूपी गंदगी और इच्छा, आकांक्षा से चलायमान चित्त में स्वस्वरूप का दर्शन संभव नहीं होता है और उसका आध्यात्मिक-विकास भी अवरुद्ध हो जाता है।
यदि व्यक्ति को आध्यात्मिक-विकास की दिशा में आगे ले जाना है तो उसके चित्त को निर्मल और शान्त बनाना होगा तथा चित्त की यह निर्मलता एवं शान्तता ध्यान के द्वारा ही संभव है। यही कारण है कि आज विश्व में ध्यान-साधना के प्रति एक आकर्षण बना हुआ है और विश्व में अनेक प्रकार की साधना-पद्धतियाँ अस्तित्व में आई हैं।
इस प्रकार, ध्यान की प्रासंगिकता पर आज कोई भी प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता। प्रस्तुत शोध-प्रबंध का उद्देश्य भी यही है कि ध्यान-साधना के प्रति सजगता उत्पन्न कर मानव-चित्त को निर्मल और शान्त बनाया जा सके तथा उसके फलस्वरूप व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र तनावमुक्त हो और विश्व में शान्ति की स्थापना हो।
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