Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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अभिप्राय है कि जीवों के शुभाशुभ कर्म के विनाश का चिन्तन-मनन करना है।114 प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश – इन चार भेदों से शुभ-अशुभ कर्मों के विपाक को स्मृतिपटल पर ला-लाकर याद करना विपाकविचय है और इस प्रसंग के लिए ध्यानशतक की इक्यावनवीं गाथा इसमें ली गई है,115 साथ ही मूलाचार की एक गाथा भी उदधृत है।116 तीनों लोकों के आकार, प्रकार, प्रमाण तथा वर्तमानकालीन जीवों के आयुष्य का विचार संस्थानविचय है और इस सन्दर्भ की पुष्टि के लिए ध्यानशतक की गाथा क्रमांक 52 से 56 तक की गाथाएं उद्धृत की गई हैं। 117 इसके अतिरिक्त भी, इसी प्रसंग को सरस बनाने के लिए ध्यानशतक की कई गाथाएँ उद्धृत की गई हैं।18 अन्त में, इस 'धवलाटीका' में शुक्लध्यान का वर्णन किया गया है। 19 वह वर्णन प्रायः तत्त्वार्थसूत्र और ध्यानशतक के समान ही है और शुक्लध्यान के प्रसंग में ध्यानशतक की लगभग 10-11 गाथाएँ ली गई हैं। गाथा क्रमांक इस प्रकार हैं - 69, 71-72, 75, 90-92, 100, 101, 103, 104 (पू.)120 इसी सन्दर्भ के अन्तर्गत भगवती-आराधना की भी लगभग नौ गाथाएँ उद्धृत की गई हैं, गाथा क्रमांक इस प्रकार है – 18, 80, 81, 82, 83, 84, 85, 86, 87, 88121 दोनों में कुछ पाठ-भेद -
“इस प्रकार धवला (पु.13) में जो ध्यानशतक की लगभग 46-47 गाथाएं उद्धृत की गई हैं, उनमें ऐसे कुछ पाठ-भेद भी हैं, जिनके कारण वहाँ कुछ
114 मूलाचार 5-203 (यह गाथा भगवती आराधना 1711 में उपलब्ध है); धवला में उसकी क्रमिक
संख्या 40, पृष्ठ 72 115 धवला में उसकी क्रमिक संख्या 41 है, पृष्ठ 72. 116 मूलाचार की 5-204 -यह गाथा भगवती-आराधना 1713 में भी पाई जाती है। 17 धवला में इनकी क्रमिक संख्या 43-47 है -पृ. 73 118 धवला में उसकी क्रमिक संख्या 48 (पृ. 73) और 49,50, 51-52, 53-55, 56, 57 (पृ. 76-77) है। । धवला, पु. 13, पृ. 77-78 120 धवला में उनकी क्रमिक संख्या इस प्रकार है - 64, 65, 66, 67-69, 70, 71, 74, 75-76
121 धवला में उनकी क्रमिक संख्या इस प्रकार है - 58-63, 72-74
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