Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji

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Page 473
________________ 446 रचित योगशास्त्र में ध्यान के सम्बन्ध में जो विस्तृत विवेचना है. वह पातंजल योगसूत्र, हठयोग-प्रदीपिका, ऐरण्डसंहिता आदि से प्रभावित है, वहीं तत्त्वार्थसूत्र मूल एवं ध्यानशतक (ध्यानाध्ययन) इन प्रभावों से पूरी तरह मुक्त हैं और जैन आगमिक-धारा का ही अनुसरण करते हुए प्रतीत होते हैं। जैसा कि हमने पूर्व में निर्देश किया कि शुभचन्द्र का ज्ञानार्णव और हेमचन्द्र का योगशास्त्र ध्यान-साधना की अन्य परम्पराओं और विशेष रूप से हिन्दू-तन्त्र से प्रभावित हैं, क्योंकि इन ग्रन्थों में प्राणायाम के विविध रूपों के साथ-साथ ध्यान के पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत –इन चार प्रकारों तथा पार्थिवी, आग्नेयी, मारूति, वारूणी और तत्त्ववती -इन पांच धारणाओं का भी उल्लेख मिलता है, जो जैन आगमिक-परम्परा और विशेष रूप से ध्यानशतक में कहीं भी हमें प्राप्त नहीं होता है। ध्यानशतक का वर्ण्य-विषय मूलतः जैन-परम्परागत ध्यान के चार प्रकारों उनके स्वरूप, लक्षणों, आलंबनों आदि को आधार बनाकर ही चलता है। जैनपरम्परा में ध्यान के चार प्रकारों में आर्त्त और रौद्र-ध्यान को संसार–परिभ्रमण का हेतु तथा धर्म और शुक्ल-ध्यान को मोक्ष का हेतु माना गया है। ध्यान का यह चतुर्विध- वर्गीकरण अन्य किसी भी भारतीय ध्यान-परम्परा में नहीं मिलता है। इस प्रकार, ध्यानशतक (ध्यानाध्ययन) प्राकृत भाषा में निबद्ध जैन धर्मदर्शन का एक मौलिक ग्रन्थ है। ध्यानशतक पर कुछ टीकाएँ भी लिखी गई हैं, जिनमें आचार्य हरिभद्र की टीका विशेष महत्त्वपूर्ण है। इसका निर्देश भी हमने प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के प्रथम अध्याय में किया है। उपसंहार के रूप में हम यहाँ प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के प्रत्येक अध्याय की वर्ण्य विषय-वस्तु की चर्चा करेंगे - प्रथम अध्याय - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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