Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji

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Page 464
________________ 438 यह शुक्लध्यान का साधन या माध्यम है। इसके बिना शुक्लध्यान शक्य नहीं होता है। योगमार्ग में उद्यमशील साधक के लिए धर्मध्यान मानसिक-एकाग्रता हेतु परमोपयोगी है। 4. शुक्लध्यान - शुक्लध्यान सबसे उत्तम ध्यान है। आत्मसमाधि की संप्राप्ति इससे ही सम्पन्न होती है। इसमें सर्वोत्तम–संहनन99, सर्वोच्च चित्तविशुद्धिवृत्ति तथा पर्याप्त शारीरिक शक्ति एवं ऊर्जा की आवश्यकता होती है, क्योंकि साधारण बल वाले साधक के समक्ष असहनीय पीड़ा या कष्ट के प्रसंग उत्पन्न हो जाएं, तो ध्यान में व्यवधान आ जाता है। ध्यानशतक की टीका में हरिभद्रसूरि शुक्लध्यान की व्याख्या करते हुए कहते हैं:- 'शोक-निवर्तक एकाग्र चित्तवृत्ति निरोध ही शुक्लध्यान है 200 अर्थात् जिसके माध्यम से स्थित शोक की सदा के लिए निवृत्ति हो जाए, ऐसा एकाग्रचित्तनिरोध ही शुक्लध्यान है। शुक्लध्यान के भी चार भेद हैं - पृथक्त्ववितर्क-सविचार – त्रिविध योगयुक्त प्राणी को।201 एकत्ववितर्क-अविचार – एकयोगयुक्त प्राणी को। सूक्ष्मक्रिया-अप्रतिपाती – सिर्फ काययोगयुक्त प्राणी को। समुच्छिन्नक्रिया-निवृत्ति – सम्पूर्ण योगरहित अयोगी-केवली को। शुक्लध्यान के प्रथम दो चरण छद्मस्थ अवस्था वाले योगी को होते हैं। ये ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थानवर्ती होते हैं। अन्तिम दो चरण एकमात्र केवली सर्वज्ञ में ही संभव है। प्रथम दो में सर्वोच्च श्रुतज्ञान तथा अन्त के दो में विशुद्धतम केवलज्ञान होता है। 199 'उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिन्ता निरोधो ध्यानम्।' –तत्त्वार्थ सूत्र –9/27 200 शुचं क्लमयतीति शुक्लं-शोकं ग्लपयतीत्यर्थः, ध्यायते चिन्त्यतेऽनेन तत्त्वमिति-ध्यानमेकाग्रचित्तनिरोध इत्यर्थः। -ध्यानशतक टीका, श्लोक 1 201 त्र्येकयोगकाययोगायोगानाम् ।140।। –तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय- 9 Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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