Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji

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Page 434
________________ 408 आनंदघनजी के पद्य में यशोविजयजी के 122 और यशोविजयजी के पद्य में आनंदघनजी के123 संकेत मिलते हैं। हम यहाँ 'उपाध्याय यशोविजय स्वाध्याय ग्रन्थ' के आधार पर यशोविजयजी के समकालवर्ती मुनियों के साथ उनका सम्बन्ध रहा था, इसका उल्लेख कर रहे हैं - 1. उपाध्याय विनयविजयजी, 2. जयसोमगणि, 3.मानविजयगणि, 4.सत्यविजय गणि पन्यास, 5.वृद्धिविजयगणि, 6. ऋद्धिविमलगणि, 7. वीरविजय और 8. मणिचन्द्र आदि ।124 देवलोकगमन - 'उपाध्याय यशोविजय स्वाध्याय ग्रन्थ' के आधार पर उपाध्यायजी का स्वर्गवास सं. 1743 में डभोई गांव में हुआ।125 लेकिन कौन से मास और कौनसी तिथि को हुआ था -यह निर्णय अभी तक भी न हो पाया है। चरणपादुका में इस प्रकार लेख अंकन है –“संवत 1745 वर्षे प्रवर्तमाने मागशीर्षमासे शुक्लपक्षे एकादशी तिथौ श्री जसविजयगणिनां पादुका कारापिता प्रतिष्ठितऽत्रेयं, तच्चरणसेवक ......विजयगणिना राजनगरे । 126 पहले इस लेख के आधार पर उपाध्यायश्री के देहावसान की तिथि भी यही मानी जाती थी, परन्तु यह भ्रम है, क्योंकि यह चरण-युगल के स्थापना की तिथि है। सुजसवेलीभास के अन्तर्गत लिखा है कि सं. 1743 में उपाध्यायश्री का वर्षावास डभाई गांव में था और सं. 1744 में उसी क्षेत्र में आपश्री का देह पंचभूत में विलीन हो गया।127 122 आनंदघन कहे जस सुनो भ्रात यही मिले तो मेरा फेरा टले ...... 123 जशविजय कहे सुनो हो आनंदघन हम तुम मिले हजुर। ओ री आज आनंद भयो मेरे तेरो मुख नीरख नीरख ।। - आनंदघन अष्टपदी 124 "उपाध्याय यशोविजय स्वाध्याय ग्रंथ' संपादक प्रद्युम्नविजयजी, जयंत कोठारी, कान्तिभाई बी शाह, पृ. 18 से 125 वही, पृ. 29 126 वही, पृ. 29 127 सतर त्रयाली चोमासु ....धोई रे..... I. – सुजसवेली, गा. 4/5 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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