Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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हम उनका प्रद्युम्नविजयगणि द्वारा संपादित 'उपाध्याय यशोविजय स्वाध्याय ग्रन्थ' और डॉ. प्रीतिदर्शना के शोधप्रबन्ध 'यशोविजयजी का अध्यात्मवाद' के आधार पर संक्षिप्त परिचय दे रहे हैं ।
1. अध्यात्ममत परीक्षा
प्रस्तुत ग्रन्थ प्राकृतभाषा में है। इसमें 184 गाथाएँ हैं। इस पर करीब चार हजार श्लोक - परिमाण टीका उपलब्ध है। इस ग्रंथ में ग्रंथकर्त्ता ने केवली - कवलाहार तथा स्त्री-मुक्ति की समीक्षा और निश्चय तथा व्यवहारनय के यथार्थ स्वरुप का स्पष्टीकरण भी किया है ।
2. अध्यात्मोपनिषद् प्रस्तुत ग्रन्थ जैन - अध्यात्म की एक अमूल्य निधि है । यह संस्कृत भाषा में है। इसमें 231 श्लोक हैं। इसको चार विभागों में विभाजित किया गया है - 1. शास्त्रयोगशुद्धि, 2. ज्ञानयोगशुद्धि, 3. क्रियायोगशुद्धि और 4. साम्ययोगशुद्धि ।
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शास्त्रयोगशुद्धि में निश्चय और व्यवहारनय के आधार पर अध्यात्म के भन्न -भिन्न रूपों का आख्यान किया है। ज्ञानयोगशुद्धि के अन्तर्गत आत्मतत्त्व की उपलब्धि का वर्णन किया गया है। क्रियायोगशुद्धि में क्रिया के महत्त्व का उल्लेख करते हुए यह बताया है - क्रिया बिना का ज्ञान निरर्थक अथवा बोझरुप है। साम्ययोगशुद्धि नामक विभाग में समतायोग में निमग्न साधक की अवस्था का तलस्पर्शी वर्णन है I
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3. ज्ञानसार उपाध्याय यशोविजयजी की प्रस्तुत कृति बत्तीस अष्टकयुक्त है। एक - एक अष्टक के आठ-आठ श्लोक हैं। उपसंहार प्रशस्ति आदि मिलाकर यह ग्रन्थ 276 श्लोक - परिमाण है। इसके बत्तीस अष्टकों के नाम निम्नांकित हैं – पूर्ण, मग्न, स्थिरता, मोहत्याग, ज्ञान, शम, इन्द्रियजय, त्याग, क्रिया, तृप्ति, निर्लेप, निःस्पृह, मौन, विद्या, विवेक, मध्यस्थ, निर्भय, अनात्मप्रशंसा, तत्त्वदृष्टि, सर्वसमृद्धि, कर्मविपाक— चिन्तन, भवोद्वेग, लोकसंज्ञात्याग, शास्त्रदृष्टि, परिग्रह, अनुभव, योग, नियाग, पूजा, ध्यान, तप और सर्वनयाश्रय । इनमें मेरे शोध - कार्य से सम्बन्धित योगाष्टक तथा ध्यानाष्टक का संक्षिप्त वर्णन करेंगे।
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