Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji

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Page 442
________________ 416 योगसूत्रटीका, 11. स्याद्वादरहस्य, 12. काव्यप्रकाशटीका, 13. न्यायसिद्धान्तमंजरी आदि। गुजराती भाषा में रचित रचनाओं के नाम निम्नांकित हैं -1. जंबूस्वामी का रास, 2. द्रव्यगुणपर्यायनोरास 3. श्रीपालरास की रचना में सहयोग। 4. सवा सौ गाथा का स्तवन, 5. डेढ़ सौ गाथा का स्तवन-साढ़े तीन सौ गाथा का स्तवन, 6. त्रैसठ गाथा का मौन एकादशी का स्तवन, 7. तीन चौबीसी, 8. विहरमान बीस जिनेश्वर के स्तवन, 9. सज्झाय, 10. समुद्र-वाहनसंवाद, 11. समताशतक, 12. समाधिशतक, आदि। इस प्रकार, उपाध्यायजी ने गुजराती भाषा में विपुल साहित्य की रचना की है। अध्यात्मसार - प्रस्तुत कृति आध्यात्मिक-जीवन की एक महत्त्वपूर्ण कृति है। यह कृति संस्कृतभाषीय है। इसकी श्लोक-संख्या 949 है। यह अनुष्टुप-छंद में निबद्ध है। उपाध्यायश्री की इस कृति का मुख्य प्रयोजन व्यक्ति के आध्यात्मिक-स्तर को विकसित करना है। 'अध्यात्मसार-अनुवाद' -डॉ.प्रीतिदर्शना पुस्तक की 'जैन अध्यात्मवाद भूमिका' में डॉ. सागरमल जैन ने कहा है –“अध्यात्मवाद से हमारा तात्पर्य क्या है ? अध्यात्म शब्द की व्युत्पत्ति अधि+आत्म से है, अर्थात् वह आत्मा की श्रेष्ठता या उच्चता का सूचक है। आचारांगसूत्र में इसके लिए 'अज्झप्प' या अज्झत्थ शब्द का प्रयोग है, जो आन्तरिक-पवित्रता या आन्तरिक-विशुद्धि का सूचक है। 139 यह ग्रन्थ सात प्रबन्ध में बंटा हुआ है। प्रथम 53 श्लोकों में अध्यात्म–माहात्म्य तथा अध्यात्म-स्वरुप का उल्लेख किया गया है। तत्पश्चात्, प्रथम-प्रबन्ध की विषय-वस्तु अर्थात् दम्भ-त्याग और भवस्वरुप-चिन्ता का वर्णन मिलता है। द्वितीय प्रबन्ध में वैराग्य की संभावना, उसके भेद तथा उसके विषय की विवेचना की गई है। तृतीय प्रबन्ध के अन्तर्गत ममत्व-त्याग, समता, सदनुष्ठान, मनःशुद्धि के विषयों 139 अध्यात्मसार -डॉ.प्रीतिदर्शना, जैन अध्यात्मवाद भूमिका, डॉ.सागरमल जैन, पृ. 7 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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