Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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9. योगशास्त्र -
कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य द्वारा रचित प्रस्तुतशास्त्र का मुख्य विषय योग है। 12 प्रकाश एवं 1012 श्लोक-परिमाण वाले इस ग्रन्थ पर 12750. श्लोकपरिमाण व्याख्या भी है। इस ग्रन्थ में अनुष्टुप छन्द का प्रयोग हुआ है। प्रथम प्रकाश के श्लोक क्रमांक-1 से 56 तक के श्लोकों की विषय-वस्तु में मुख्य मंगलाचरण-योग का माहात्म्य, फल, सनत्कुमार चक्रवर्ती की विविध प्रकार की लब्धियों, दृढ़-प्रहारी, चिलातीपुत्र आदि पर योग-प्रभाव, योग का स्वरुप, ज्ञान, दर्शन, चारित्र-रुप योग का स्वरुप, नौ तत्त्वों, पंच महाव्रतों, उनकी पच्चीस भावनाओं, समिति, गुप्ति तथा पैंतीस मार्गानुसारी के गुणों आदि का उल्लेख किया गया है।80
द्वितीय प्रकाश में 115 श्लोकों के अन्तर्गत विविध विषयों का उल्लेख है, जैसे -सम्यक्त्व का स्वरुप, भेद, मिथ्यात्व के प्रकार, देव, संघ, गुरु, धर्म का स्वरुप, इसके विपरीत, कुदेवादि का स्वरुप, लक्षण, अहिंसा का माहात्म्य तथा सूभूम एवं ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का जीवन-चित्रण, कालसौकरिक, दर्दुरांकदेव, दृढ़कालिकाचार्य, वसुराजा, मूलदेव, मण्डिक, रोहिणेय चोर, शील में सुदृढ़ सुदर्शन, धनलोभी सागरचक्री, तिलकसेठ तथा नन्दराजा, अभयकुमार आदि अनेक व्यक्तियों के चरित्र का चित्रण किया गया है, साथ ही पंच स्थूलव्रत -अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, परिग्रह तथा उसके विपरीत, हिंसादि के आधार पर उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है और इस प्रकाश के अन्त में संतोष की महिमा और तृष्णा के दुष्परिणामों को प्रकट किया है।
तृतीय प्रकाश के भी 155 श्लोकों में श्रावक-जीवन से संबंधित गुणव्रतों, शिक्षाव्रतों, बारहव्रतों, तीन मनोरथों, श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं आदि का वर्णन
80 नमो दुर्वाररागादि. ............ गृहिधर्माय कल्पते।। – योगशास्त्र, 1 प्रकाश, 1-56 श्लोक, पृ. 1-90 । सम्यक्त्वमूलानि ........... संतोषो यस्य भूषणम् ।। वही, प्रकाश 2, श्लोक 1-115, पृ. 91-146
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