Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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आपका नाम जसवंतकुमार था। 106 यही जसवंतकुमार आगे चलकर यशोविजय के रुप में विख्यात हुए। कनोड़ा गांव ही उपाध्यायश्री का जन्मस्थल है, इसका सुस्पष्ट वर्णन तो 'सुजसवेलीमास' में भी नहीं है। वि.सं.1688 में कुणगेर के वर्षावास की पूर्णाहूति के पश्चात् नयविजयजी म.सा. कनोड़ा पधारे और जसवंतकुमार ने अपनी माता के संग प्रथम बार उनके दर्शन का लाभ लिया।107 इसके आधार पर यह मानने में कोई दिक्कत नहीं है कि यशोविजयजी के मातापिता कनोड़ा के निवासी थे और उनका जन्म भी यहीं हुआ था।
दीक्षाग्रहण – वि.सं. 1688 में नयविजयजी कनोड़ा पधारे और उनकी दीक्षा हुई -ऐसा निर्देश 'सुजसवेलीभास' में मिलता है,108 परन्तु उस ऐतिहासिक-चित्रपट के उल्लेखी आधार पर सं.1663 में यशोविजय गणि से अलंकृत थे, लेकिन कम-से-कम छ: से नौ वर्ष के दीक्षापर्याय के बाद गणि-पद दिया जाता है, तो चित्रपटानुसार यह माना जा सकता है कि यशोविजयजी का जन्म समय करीब 1645, दीक्षा ग्रहण सं. 1653, गणिपदग्रहण सं. 1663 और देवलोकगमन सं. 1743-44 में हुआ था।
अतः, संशय यह है कि दोनों प्रमाणों में से अधिक महत्त्व किसे दिया जाए ? समाधान के रुप में डॉ. सागरमल जैन के शब्दों में -गणिपद का सं. 1663 न होकर 1693 होना चाहिए, कारण, उस समय छह (६) और नौ (E) में बहुत ज्यादा अन्तर नहीं होता था। इस अपेक्षा से उपाध्यायश्री की दीक्षा 1688 में और गणिपदवी 1993 में हुई होगी, अतः जन्म 1670-1979 के बीच के काल में संभव हो सकता
है। 109
106 उपाध्याय यशोविजय स्वाध्याय ग्रन्थ से, उपाध्याय यशोविजयनुं जीवनवृतः संशोधनात्मक अभ्यास (जयन्त कोठारी) से उद्धृत, पृ.1 107 संवत सोल अठ्यासियेजी, रही कुणगेर चौमासी। श्री नयविजय पंडितवरजी, आव्या कन्होडे उल्लासी।।
मात पुत्र स्युं साधुनाजी वांदिचरण सविलास । सुगुरू-धर्म-उपदेशथीजी पामी वयराग प्रकाश।। -सुजसवेलीभास, गा. 1/9-10 108 विजयदेव गुरू हाथनी जी बडदीक्षा हुई खास। बिहुने सोल अठ्यासियेजी करता योग अभ्यास।। -वही, 1/03 109 डॉ. सागरमल जैन से व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर।
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