Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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पंडित कन्हैयालालजी लोढ़ा ने अपनी कायोत्सर्ग नामक पुस्तक में लिखा है -“बन्धनमुक्त होने के लिए सम्बन्ध-मुक्त होना आवश्यक है और सम्बन्ध-मुक्त होने के लिए देह से सम्बन्ध-विच्छेद की परमावश्यकता है।" 182 आशय यह है कि कायोत्सर्ग की साधना के माध्यम से देहाभिमान क्षीण होते ही जीव शरीर, संसार तथा कषायादि बन्धनों से मुक्त हो जाता है। 'कायोत्सर्ग' शब्द की निर्मिति मूलतः दो शब्दों के संयोग से हुई है - काय+उत्सर्ग। काय, अर्थात् शरीर तथा उत्सर्ग यानी छोड़ना या त्याग करना ।
सम्पूर्णतया काया का त्याग असंभव है। वस्तुतः, काया के प्रति जो आसक्ति या ममत्ववृत्ति है, उसका त्याग ही कायोत्सर्ग है। काया के ग्यारह पर्यायवाची शब्द हैं – काया, शरीर, देह, बोदि, उपचय, उच्छ्य, कलेवर, समुच्छय, भस्पा, तनु और प्राण ।183 इसी प्रकार उत्सर्ग के भी ग्यारह पर्यायवाची हैं - उत्सर्ग. व्युत्सर्ग, अवकिरणादि ।184
कायोत्सर्ग के भेद -
___ जैनागमों में 'व्युत्सर्ग' शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया गया है। व्युत्सर्ग के यहाँ दो भेद बताए गए हैं - 1. द्रव्य-व्युत्सर्ग और 2. भाव-व्युत्सर्ग1185 __बाह्य-वस्तुओं का त्याग द्रव्य–व्युत्सर्ग तथा मनोवृत्तियों अथवा चित्तवृत्तियों का त्याग भाव-व्युत्सर्ग कहलाता है।
प्राचीनाचार्यों ने द्रव्य-व्युत्सर्ग को भी चार भेदों में विभाजित किया है -
182 'कायोत्सर्ग व व्युत्सर्ग'- पुस्तक से उद्धृत, पृ. 26 183 आवश्यकनियुक्ति, गाथा. 1460 184 वही, गाथा 1465 185 विवाहप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक 25, उद्दे. 7
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