Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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हेमचन्द्राचार्य के माता-पिता भिन्न-भिन्न धर्मावलंबी थे। माता जैनधर्मावलम्बी थी, तथा पिता शैवधर्मावलम्बी थे। डॉ. सागरमल जैन ने अपने अभिनन्दन ग्रन्थ के एक आलेख आचार्य :हेमचन्द्र : एक युगपुरुष' में लिखा है -आज भी गुजरात की इस मोढवणिक् जाति में वैष्णव और जैन-दोनों धर्मों के अनुयायी पाए जाते हैं, अतः हेमचन्द्र के पिता चाचिग के शैवधर्मावलम्बी और माता पाहिनी के जैनधर्मावलम्बी होने में कोई विरोध नहीं है, क्योंकि प्राचीनकाल से ही भारतवर्ष में ऐसे अनेक परिवार रहे हैं, जिनके सदस्य भिन्न-भिन्न धर्मों के अनुयायी होते थे। सम्भवतः पिता के शैवधर्मावलंबी और माता के जैनधर्मावलम्बी होने के कारण ही हेमचन्द्राचार्य के जीवन में धार्मिक-समन्वयशीलता के बीज अधिक विकसित हो सके। एक दिन देवचन्द्राचार्य की नजर उस तेजस्वी बालक चंगदेव (हेमचन्द्र) पर पड़ी। उन्होंने अपने ज्ञानबल के द्वारा बालक में छिपी महान् प्रतिभा को देखा और बाल्यावस्था में दीक्षित करके आगम-साहित्य आदि का अध्ययन करवाया। हेमचन्द्राचार्य की गुरुपरम्परा को लेकर काफी मतभेद है।
'प्रभावक-चरित्र' नामक ग्रन्थ के आधार पर चन्द्रगच्छ के आचार्य प्रद्युम्नसूरि के शिष्य देवचन्द्रसूरि और देवचन्द्रसूरि के शिष्य हेमचन्द्रसूरि थे।'
'प्रबन्धकोश' में यह प्रमाण मिलता है कि हेमचन्द्राचार्य पूर्णतल्लगच्छीय थे। इनकी गुरु-परम्परा इस प्रकार है -
पूर्णतल्लगच्छीय श्री दत्तसूरि
. यशोभद्र
प्रद्युम्नसूरि
गुणसेनसूरि देवचन्द्रसूरि तथा उनके शिष्य हेमचन्द्रसूरि थे।
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प्रस्तुत वाक्यांश 'डॉ.सागरमल जैन अभिनंदन ग्रंथ' से उद्धृत खंड-6 (जैनविद्या के आयाम) पृ. 688 चांद्रगच्छसरः पद्म तत्रास्ते मण्डितौ गुणैः । प्रद्युम्नसूरिशिष्यः श्री देवचंदमुनीश्वरः। - प्रभावकचरित्र पृ.183
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