Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji

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Page 416
________________ 390 39 वें सर्ग का नाम 'शुक्लध्यानफल' है। यह बयासी श्लोक-परिमाण है। इसकी विषय -वस्तु शुक्लध्यान से संबंधित है। शुक्लध्यान के स्वरुप का और शुक्लध्यानी का वर्णन करते हुए ग्रन्थकार ने कहा है –“जो चित्त क्रिया से रहित, इन्द्रियों से अतीत और ध्यान-धारणा से विहीन होकर अन्तर्मुख हो जाता है, समस्त संकल्प-विकल्पों से रहित होकर आत्मस्वरुप में लीन हो जाता है। 70 आगे शुक्लध्यान का अधिकारी कौन हो सकता है, शुक्लध्यान के लक्षण, भेद और फल का वर्णन किया गया है। तदनन्तर समुद्घात-प्रक्रिया, शुक्लध्यान का प्रभाव, आत्मिक-सुख की विशेषता के उल्लेख के साथ ही ग्रन्थ-प्रशस्ति में ग्रन्थकार कहते हैं -"इस प्रकार से मैंने कुछ उत्तम वर्गों के द्वारा संक्षेप में ध्यान के फल को बताया है। यदि कोई पूर्ण रुप से इसके कथन में समर्थ है, तो वे वीर प्रभु ही हैं। मैंने जिनागम से कुछ साररुप में उद्धृत करके अपने बुद्धिवैभव के अनुसार इस ध्यानशास्त्र की रचना की है। जो चित्त में, ज्ञानार्णव के माहात्म्य का वेदन करता है, वह दुस्तर भवार्णव से पार हो जाता है।71 हेमचन्द्राचार्य का जीवन परिचय - ___ माता-पिता द्वारा प्रदत्त हेमचन्द्राचार्य का नाम चंगदेव था। इनका जन्मस्थल गुजरात के अन्तर्गत धन्धुका नामक नगर था। विक्रम संवत् 11452 की कार्तिक मास की पूनम की मध्यरात्रि में इनका जन्म हुआ था। इनकी माता का नाम पाहिनी तथा पिता का नाम चाचिग था। यह मोढ़ वंशी वणिक् थे। इनके मामा का नाम नेमिनाग था। यह कहा जाता है कि 70 प्रस्तुत संदर्भ 'ज्ञानार्णव' पुस्तक की प्रस्तावना से उद्धृत, पृ. 34 71 क) इति जिनपति सूत्रात्सारमुद् धृत्य किंचित् स्वमतिविभवयोग्यं ध्यानशास्त्रं प्रणीतम्। विबुधमुनिमनीषाम्भोधि चन्द्रायमणं चरतु भुवि विभूत्यै यावदद्रीन्द्रचन्द्रान।। - ज्ञानार्णव.... || वही. सर्ग 39, श्लोक 181, पृ. 700 ख) वही, सर्ग:39, 181/1, पृ. 700 72 वर-वेदेश्शरे (3145) वर्षे कार्तिके पूर्णिमानिशि। 8501 – प्रभावक चरित पृ. 212 73 एकदा नेमिनागमामा श्रावकः समुत्थाय श्री देवचन्द्रसुरीन् जगौ भगवन् । अयं मोठज्ञातीयो मद्भगिनी पाहिणिकुक्षि भूः ढक्करचाचिगनंदनश्चांगदेव नामाः ।। – प्रबन्धकोश, पृ. 47, पंक्ति 5-6 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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