Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
View full book text
________________
392
'कुमारपालप्रतिबोध' में भी इस बात का समर्थन किया गया है कि हेमचन्द्राचार्य पूर्णतल्लगच्छ के थे।"
'त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित' के अन्तर्गत हेमचन्द्र को कोटिक गण की वजीयशाखा का आचार्य माना गया है, किन्तु इससे गुरु-परम्परा में कोई अन्तर नहीं आता है।" हेमचन्द्राचार्य के प्रचण्ड वैदुष्य की झलक उनके द्वारा विरचित साहित्य काव्य, छन्द, कोश, कथा, योग आदि के अनेक ग्रन्थों में देखने को मिलती है।
_ 'प्रभावक-चरित' ग्रन्थ के अन्तर्गत हेमचन्द्राचार्य के लगभग सभी मुख्य–मुख्य ग्रन्थों के नाम उल्लेखित हैं।
विलक्षण प्रतिभा के धनी हेमचन्द्राचार्य द्वारा रचित ग्रन्थों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है -
1. सिद्धहेमशब्दानुशासन - .
कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्र का यह ग्रन्थ व्याकरण पर आधारित है। गुजरात नरेश सिद्धराज जयसिंह के अनुरोध से यह ग्रन्थ रचा गया।
प्रस्तुत व्याकरण-शास्त्र आठ अध्याय से युक्त है। प्रथम सात अध्याय में संस्कृत तथा आठवें अध्याय में प्राकृत भाषा का व्याकरण है। इस ग्रन्थ के
पूर्णतल्लगच्छे श्रीदत्तसूरि...श्रीयशोभदसूरिः इति नाम। तदीयपट्टे प्रद्युम्नसूरिन्थकारः । तत्पदे श्री गुणसेनसूरि....गुणसेनपट्टे श्रीदेवचंदसूरयः ....... –प्रबन्धकोश पृ. 46-47 असि भमरहिओ पुन्नतल्ल गुरू-गच्छ-दुम-कुसुम-गुच्छे। समय मयरंद-सारी सिरिदत्त गुरू सुरहि सालो।। - कुमारपालप्रतिबोध, प्रस्तावना पृ. 115 त्रिषष्टि शलाका पुरूष प्रशस्ति - 5, 8-15 व्याकरणं पंचाग प्रमाणशास्त्रं प्रमाण मीमांसा। छंदोऽलंकृति चूडामणी च शास्त्रे विभुळधित ।। 834 || एकार्थानेकार्था देश्या निर्घण्टु इति च चत्वारः। विहिताश्च नामकोशाः शुचि कवितानधुपाध्यायाः । 1835 ।। . व्युत्तरषष्टिशलाकानरेत्तिवृत्तं गृहिव्रतविचारे। अध्यात्मयोगशास्त्रं विदधे जगदुपकृतिविधित्सुः ।। 836 || लक्षण-साहित्यगुणं विदधे च द्वयाश्रयं महाकाव्यम्। चक्रे विंशतिमुच्चैः सवीतरागस्तवानां च ।। 837 ।। इति तद्विहितग्रन्थसंख्यैव नहि विद्यते। नामापि न विदन्त्येषां मादृशा मन्दमेधसः ।। 838 || -प्रभावकचरित .211
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org