Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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मोक्षमार्ग में उद्यमशील साधक को ये लब्धियाँ या ऋद्धियाँ सहज ही प्राप्त होती हैं। वह इनके लिए कोई प्रयत्न नहीं करता है।
इन लब्धियों का स्वरूप इस प्रकार है -
___अणिमा अर्थात् अणुरूप, छोटा शरीर बना लेना। इस ऋद्धि के प्रभाव से अपनी देह को इतना सूक्ष्म यानी छोटा बनाया जा सकता है कि वह सरलता से कमल-तन्तु के छिद्र में प्रवेश कर सकता है। लघिमा, अर्थात् लघुरूप, हल्कापन। इसके बल से देह को हवा (वायु) से भी अधिक हल्का-फुल्का बनाया जा सकता है। महिमा, अर्थात् महत्व, इसका दूसरा अर्थ है –भारीपन या बड़ापन। इस लब्धि के संयोग से शरीर को मेरुपर्वत के समान या उससे भी ज्यादा बड़ा बनाया जा सकता है। प्राकाम्यऋद्धि के प्रभाव से इच्छानुसार जमीन या जल पर चला जा सकता है। जंघाचारणऋद्धि के सामर्थ्य से चन्द्र-सूर्यादि के विमानों की किरणों तथा वायुवेग की चपेट से युक्त किसी भी पदार्थ का सहारा लेकर गगन में उड़ने अथवा चलने की शक्ति प्राप्त होती है। जिस तरह जमीन पर चलते हैं, उसी तरह आकाश में भी चलने की जो शक्ति है, उसको आकाशगतिचारणऋद्धि कहते हैं। ... आकाश-गमन के समय पर्वतों के बीच अप्रतिबन्धता से गमन करने का सामर्थ्य अप्रतिघातीऋद्धि से मिलता है। अन्तर्धानऋद्धि के प्रभाव से अदृश्य होने की शक्ति प्राप्त होती है। जिसके सामर्थ्य से नानाविध रूप धारण करने की शक्ति मिलती है, उसे कमरूपिताऋद्धि कहा जाता है। जिस ऋद्धि से दूरस्थ इन्द्रियों के विषयों को ग्रहण कर लिया जाता है, उस ऋद्धि का नाम दूरश्रावीऋद्धि है। एक साथ अलग-अलग बहुत-से विषयों को जान लेने की ऋद्धि का नाम संभिन्नज्ञानऋद्धि है। कोष्ठबुद्धित्व, बीजबुद्धित्व आदि ज्ञान की ऋद्धियाँ मानी जाती हैं और क्षीरासवित्व, मध्वासवित्व, वादित्व आदि वाचिक-ऋद्धियाँ
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