Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
View full book text
________________
अध्याय-5
ध्यानशतक का स्थानांग, भगवती, औपपातिक, तत्त्वार्थ, मूलाचार, भगवती–आराधना, धवलाटीका तथा आदिपुराण से तुलनात्मक अध्ययन
310
जहाँ तक ध्यानशतक का विभिन्न श्वेताम्बर - दिगम्बर ग्रन्थों से तुलनात्मकअध्ययन का प्रश्न है, इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम प्रयास पं. बालचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री ने अपने द्वारा सम्पादित एवं अनुवादित 'ध्यानशतक' की भूमिका में किया था। उसे आचार्य कीर्त्तियशसूरीश्वरजी ने अपने ध्यानशतक (हरिभद्रीयटीका सहित) के प्रारम्भ में यथावत् रूप से दिया है। मैंने प्रस्तुत तुलनात्मक - अध्ययन में उसे आधार बनाया है, किन्तु विवेचन संक्षिप्त रूप से अपनी भाषा एवं शैली में किया है। यद्यपि सन्दर्भ उन्हीं ग्रन्थों के आधार पर देने का प्रयत्न किया गया है ।
दूसरे, प्रस्तुत अध्ययन में मैंने अपनी परम्परा और कालक्रम के आधार पर प्रथम श्वेताम्बर आगम-ग्रन्थों को, तत्पश्चात् तत्त्वार्थसूत्र को तदुपरान्त दिगम्बरआगमतुल्य ग्रन्थों को तथा धवला आदि टीका को आधार बनाकर यह विवेचन किया है। पं. बालचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री ने कुछ दिगम्बर - पुराणों के आधार पर भी तुलनात्मक - अध्ययन को प्रस्तुत किया था, उसको मैंने सबसे अंत में स्थान दिया
है ।
इस प्रकार, इस तुलनात्मक अध्ययन का प्रारम्भ श्वेताम्बर - मान्य आगमसाहित्य से करके, फिर अन्त में दिगम्बर-ग्रन्थों को दिया गया है। चूंकि 'ध्यानशतक' के रचनाकार जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण श्वेताम्बर - परम्परा के रहे हैं, अतः प्रथम श्वेताम्बर–आगम से तुलना करना ही मुझे उचित लगा, क्योंकि उन्होंने 'ध्यानशतक' में श्वेताम्बर - आगमों का ही आधार लिया है। उसके पश्चात् मैंने 'तत्त्वार्थसूत्र' को स्थान दिया है, क्योंकि 'तत्त्वार्थसूत्र' में भी श्वेताम्बर - आगमों से ध्यानसंबंधी काफी समरूपता प्राप्त होती है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org