Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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उपर्युक्त चारों अनुप्रेक्षाओं को बताना होता, तो वे गाथा क्र. आठ में अनित्यादि के साथ चार की संख्या का उल्लेख अवश्य करते, परंतु वहां वैसा कुछ भी नहीं है। 4. शुक्लध्यान :
स्थानांगसूत्र में शुक्लध्यान के चार प्रकारों का उल्लेख मिलता है। उनके नाम अधोलिखित हैं -
1.पृथक्त्ववितर्क-सविचार, 2. एकत्ववितर्क-अविचार, 3. सूक्ष्मक्रिया-अनिवर्ती और 4. समुच्छिन्नक्रिया-अप्रतिपाती।
__ ध्यानशतक में इन चारों प्रकारों का उल्लेख शुक्लध्यान के ध्यातव्यद्वार में किया गया है। शुक्लध्यान के चार लक्षणों के सन्दर्भ में इतना ही समझना है कि स्थानांग तथा ध्यानशतक' –दोनों में लक्षणों का वर्णन है और उनमें किसी प्रकार का कोई अन्तर नहीं, परन्तु इतना जरूर है कि ध्यानशतक ग्रन्थ के गाथा क्रमांक 91-92 में उन लक्षणों के स्वरूप की भी चर्चा की गई है, साथ ही शुक्लध्यान के चार आलम्बनों का वर्णन स्थानांगसूत्र तथा ध्यानशतक में समान रूप से किया गया है।
अनंतवृत्तितानुप्रेक्षा, विपरिणामानुप्रेक्षा, अशुभानुप्रेक्षा तथा अपायानुप्रेक्षा -इन चारों शुक्लध्यानों की अनुप्रेक्षाओं का वर्णन हमें स्थानांग 45 और ध्यानशतक 46 में
37 जैसा कि शुक्लध्यान के प्रसंग में "णियपमणुप्पेहाओ चत्तारि चरित्तसंपण्णो” वाक्य के द्वारा चार
संख्या का निर्देश किया गया है। . - ध्यानशतक, 87 38 स्थानांगसूत्र, 4 स्था., 1 उद्दे., 69सूत्र, 225 पृ. मुनिमधुकर प्रकाशन ब्यावर । 39 ध्यानशतक, गाथा 77-78, 79-80, 81, 82 40 स्थानांगसूत्र, स्था.4, उद्दे.1, सूत्र 70, पृ. 226 . 4॥ ध्यानशतक -90 42 ध्यानशतक - 91-92 43 स्थानांगसूत्र, स्था.4, उद्दे.1, सूत्र 71, पृ. 226 44 ध्यानशतक'- 69 45 स्थानांगसूत्र, स्था.4, उद्दे. 1, सूत्र 72, पृ. 226
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