Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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ध्यानामृत”, सर्वार्थसिद्धि 86, गुणस्थानकक्रमारोह 87 उपर्युक्त ग्रन्थों के अलावा अन्य
ग्रन्थों में भी शुक्लध्यान के इन्हीं चारों प्रकारों का उल्लेख है ।
आवश्यकचूर्णि ̈88
सम्मतिवृत्ति, हितोपदेशवृत्ति,
593
संवेगरंगशाला 91 भगवती - आराधना 92, जैनसाधना - पद्धति में ध्यान 3 – इत्यादि ग्रन्थों में संक्षेप में शुक्लध्यान के चार प्रकारों का वर्णन इस प्रकार है
1. पृथक्त्व - वितर्क - सविचार
विचारधारा 'पृथक्त्व-वितर्क - सविचार' शुक्लध्यान है।
2. एकत्व - वितर्क -अविचार
द्रव्य की विभिन्न पर्यायों में चित्त के आवागमन को छोड़कर मात्र एक ही पर्याय (विषय) में विचारधारा का रहना एकत्व - वितर्क - अविचार शुक्लध्यान है ।
3. सूक्ष्मक्रिया-प्रतिपाती - मानसिक - वाचिक और कायिक- प्रवृत्तियों का निरोध करके मात्र श्वासोश्वास की सूक्ष्मक्रिया शेष रहना - यह सूक्ष्मक्रिया-प्रतिपाती शुक्लध्यान है।
4. समुच्छिन्न- क्रिया-निवृत्ति जब मन, वचन और काया की समस्त प्रवृत्तियों का निरोध होने पर तीसरे स्तर पर जो सूक्ष्म श्वास-प्रश्वास रहता है, उसका भी निरोध समुच्छिन्न- क्रिया-निवृत्ति है ।
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द्रव्य - पर्याय को एक
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585
ध्यानामृत, धर्मालंकार पुस्तक उद्धृत, पृ. 206. 586 सर्वार्थसिद्धि- 9/44.
587
समुच्छिन्न क्रिया यत्र सूक्ष्मयोगात्मिकाऽपि हि।
588
समुच्छिन्नक्रियं प्रोक्तं तद्द्वारं मुक्तिवेश्मनः । । - गुणस्थानकक्रमारोह - 106. सुत्तणाणे उवउत्तो अत्यंमि .. बितिए ज्झाणे वितक्कती ।। - आवश्यकचूर्णि 589 कषायदोषमलापगमात् शुचित्वम्
590
201
5- दूसरे में संक्रमण करने की
बन्धवियोगो मोक्षः । । - सम्मतिवृत्ति, का. - 3/63. मुनेर्मनोगुप्तिरिति । । - हितोपदेशवृत्ति - 484.
शुक्लध्यानमपि चतुर्विधं
591 संवेगरंगशाला, गाथा - 9963-64.
592
झाणं पुधत्तसवितक्कसविचारं हवे पढमसुक्कं । सवितक्केक्कत्ताविचारं ज्झाणं विदियसुक्कं । । सुहुमकिरियं तु तदियं सुक्कज्झाणं : सुक्कं जिणा समुच्छिण्णकिरियं तु ।। भगवती आराधना- 1872-73.
593 जैनधर्मसाधना-पद्धति में ध्यान, डॉ सागरमल जैन, पृ. 30-31.
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