Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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2. चित्तवृत्ति की स्थिरता और उसमें तन्मयता।
3. योगनिरोध।669 शुक्लध्यान का मुख्य लक्ष्य ध्येय विषयों को संक्षिप्त करते हुए मन को निर्विकल्पता की स्थिति में ले जाना है, अथवा मन को अमन बना देना है।
ध्यानशतक की गाथा क्रमांक सत्तर में ग्रन्थकर्ता जिनभद्रगणि ने कहा है कि शुक्लध्यान के प्रथम तीन चरणों में ध्यान के विषयों को क्रमशः संक्षिप्त करते हुए अन्त में चेतना को निष्कम्प बनाया जाता है।670
पहले शरीर को स्थिर किया जाता है, फिर क्रमशः वचन का निरोध और अन्त में स्थूल मन का निरोध किया जाता है। शुक्लध्यान के जो चार चरण हैं, उनमें क्रमशः स्थूल-काययोग, फिर स्थूल-वचनयोग और उसके बाद स्थूल-मनोयोग का निरोध होता है, फिर अग्रिम चरण में सूक्ष्म-काययोग के संयोग से सर्वप्रथम सूक्ष्म-मनोयोग का निरोध होता है, तत्पश्चात् सूक्ष्म-मनोयोग के संयोग से सूक्ष्म -वचनयोग का निरोध होता है और अन्त में सूक्ष्म-काययोग का भी निरोध करके निर्वाण को प्राप्त किया जाता है।71
___ इस क्रम से शुक्लध्यान में योगनिरोध की प्रक्रिया चलती है, इसमें जो क्रम बताया गया है, उसमें व्यतिक्रम सम्भव नहीं है।
ध्यानविचार72 ग्रन्थ के अन्तर्गत यह लिखा है कि चित्त को प्रथम तीन भुवन -रूपी विषय में व्याप्त करके, तत्पश्चात् उसमें से एक वस्तु में संकुचित करते हैं, फिर उस वस्तु की एक पर्याय पर केन्द्रित करते हैं, तदनन्तर उस वस्तु की एक पर्याय में से भी चित्त को हटा लिया जाता है, इस स्थिति को परमशून्य भी कहा जाता है।73
चार ध्यानों के फलद्वार - ध्यानशतक में बताया गया है कि आर्त्तध्यान राग-द्वेष एवं मोह की परिणति वाले जीवों को ही होता है, जिसके फलस्वरूप आर्त्तध्यान
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669 ध्यानविचार-सविवेचन पुस्तक के ग्रन्थपरिचय से उद्धृत, पृ. 57. 670 तिहुयणविसंय कमसो संखिविउ मणो अणुंमि छउमत्थो। ___ झायइ सुनिप्पकंपो झाणं अमणो जिणो होई ।। - ध्यानशतक, गाथा- 70.
(क) अध्यात्मार- 16/34. (ख) ज्ञानार्णव- 39/43-49.
(ग) ध्यानदीपिका- 19. 672 परम-शून्यं–त्रिभुवनविषय-व्यापि चेतो विधाय। . ___ एकवस्तुविषयतया संकोच्य ततस्तस्मादप्यपनीयते।। - ध्यानविचार, मूलपाठ-4. 073 ध्यानविचार सविवेचन पुस्तक से उद्धृत, पृ. 45.
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