Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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पर होता है, जबकि रौद्रध्यान क्रिया के स्तर पर होता है। दूसरों को मारना, काटना, अंगभंग करना, नुकसान पहुंचाना- ये रौद्रध्यानी के चिन्तन के प्रमुख विषय होते हैं।
धर्मध्यान के आलम्बन
एक पदार्थ पर अवस्थित मन जब चलायमान् अथवा विचलित हो जाता है, तब धर्मध्यान का साधक जिन आलम्बनों पर अवलम्बित रहता है, वे आलम्बन इस प्रकार हैं
. वाचना, प्रतिपृच्छना, परिवर्तना और अनुप्रेक्षा।12 कहीं-कहीं हमें यह भी देखने को मिलता है कि प्रतिपृच्छना को पृच्छना और परिवर्तना को परावर्तन नाम से भी अभिहित किया गया है। कहीं-कहीं स्वाध्याय के भेद के रूप में धर्मकथा का भी उल्लेख मिलता है, इन्हें ध्यान के आलम्बन भी कहा गया है। आलम्बन का अर्थ है, जिनके सहारे ध्यान किया जाता है।13
ध्यानशतक ग्रन्थ के ग्रन्थकार ने भी प्रस्तुत ग्रन्थ में अनुप्रेक्षा के स्थान पर अनुचिन्ता नाम अभिहित किया है। अनुप्रेक्षा या अनुचिन्ता में भी आलम्बन की अपेक्षा रहती है। अनेक आगमों तथा आगमेतर ग्रन्थों में धर्मध्यान के उन चार आलंबनों का उल्लेख मिलता है, जो मूलतः स्वाध्याय के अंग कहे गए हैं।
712 वायणा पुच्छणा चेव तहेव परियट्टणा
....... || - उत्तराध्ययन. 713 आलंबणं च वायण पुच्छण परिवपट्टणाणुपेहाओ।
धम्मस्स तेण अविरूद्धाओ सव्वाणुपेहाओ।। - भगवती-आराधना- 1705. 714 परियट्ठणाऽणुचिंताओ।। - ध्यानशतक- 42.
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