Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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और उनका सह-सम्बन्ध | 297
298
2. परमात्मा द्वारा कथित ५वास्तिकायमय लोक का स्वरूप | 2
3. ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और तिर्यक्लोक का स्वरूप, अर्थात् त्रिभुवन का स्वरूप | 299
4. लोकव्यवस्था का स्वरूप ।
5. उपयोग लक्षण युक्त, अनादि, अनन्त, शरीर से भिन्न, अरूपी, स्वयं के कर्मों का कर्त्ता एवं भोक्ता - ऐसे जीव का स्वरूप | 300
297 जिणदेसियाइं लक्खण 298 पंचत्थिकायमइयं 299 खिइ-वलंय-दीव - सागर
300 उवओगलक्खणमणाइतिहणमत्थंतरं
ध्यानशतक, गाथा - 52.
जे य दव्वाणं ।। तिविहमहोलोयभेयाइं ।। - वही, गाथा - 53. लोगट्ठिइविहाणं ।। वही, गाथा - 54.
सयस्स कम्मस्स ।। -
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वही, गाथा - 55.
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