Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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शुक्लध्यान है। इसके द्वारा सम्पूर्ण कर्मों का क्षय होने पर आत्मा अपने निजस्वरूप में रमण करती हुई अनंतानन्द, परमानन्द या परमसुख फो उपलब्ध कर लेती है।
शुक्लध्यान के लक्षण - ध्यानशतक ग्रन्थ के अन्तर्गत ग्रन्थकार आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने शुक्लध्यानोपगत चित्त ( जिसका चित्त शुक्लध्यान में निरुद्ध हो गया है) वाले धीर श्रमण की पहचान अथवा लक्षण बताए हैं, जो निम्नांकित हैं
अवहा-संमोहा-विवेग-विउस्सग्गा तस्स होंति लिंगाई। लिंगिज्जइ जेहिं मुणि सुक्कज्झाणोवगय चित्तो।।74
1. अवध-लक्षण 2. असम्मोह-लक्षण 3. विवेक-लक्षण और 4. व्युत्सर्ग-लक्षण।
इनसे मुनि के चित्त का शुक्लध्यान में संलग्न होना सूचित होता है। ध्यानशतक के समान ही अन्य ग्रन्थों में शुक्लध्यान के लक्षणों का वर्णन मिलता है। वे निम्नांकित
स्थानांगसूत्र, भगवतीसूत्र, औपपातिकसूत्र". आवश्यकचूर्णिका अध्यात्मसार, ध्यानविचार 80, ध्यानकल्पतरू811
अब एक-एक लक्षण (लिंग) की व्याख्या करेंगे।
474 ध्यानशतक, गाथा- 90. 475 चत्तारि झाणा पण्णता सुक्कस्सणं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णता तंजहा–अव्वहे, असम्मोहे,
विवेगे, विउस्सग्गे।। - स्थानांगसूत्र, चतुर्थ स्थान, उद्देशक- 1, सूत्र- 70. 476 भगवतीसूत्र- 802. 477 औपपातिकसूत्र- 20.. 478 लक्खणाणि वि चत्तारि-विवेगे ................. अत्थे न संमुज्झतित्ति। - आवश्यकचूर्णि. 479 लिङगं निर्मलयोगस्य शक्लध्यानवतोऽवधः। __ असम्मोहो विवेकश्च व्युत्सर्गश्चाभिधीयते ।। – अध्यात्मसार- 16/83. 480 ध्यानविचारसविवेचन, पृ. 35.
" ध्यानकल्पतरू, द्वितीय प्रतिशाखा, पृ. 364. 482 (क) क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यारतिस्त्रीचर्यानिषधाशय्याक्रोशवधयाचनाऽलाभरोगतृण
स्पर्शमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाज्ञानादर्शनानि।। - तत्त्वार्थसूत्र- 9/9.
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