Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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है, तत्पश्चात् उसका चित्त चलायमान हो जाता है, किसी दूसरे पदार्थ, अथवा विषय में .चला जाता है।
आचार्य हरिभद्रसूरि और सिद्धसेनगणि अपनी-अपनी टीकाओं में इसी अभिप्राय का समर्थन करते हुए कहते हैं कि किसी एक वस्तु या विषय का आश्रय लेने वाली जो स्थिर चित्तवृत्ति है, उसका नाम ध्यान है, जो सिर्फ छद्मस्थों में होती है, केवलियों में नहीं, क्योंकि केवलियों (अयोगी) का ध्यान तो चित्त का अभाव, अर्थात् मन, वचन और काया के योगों के पूर्ण निरोधस्वरूप है।
____ ध्यानविचार में भी इसी मान्यता को स्वीकार किया गया है। ध्यानदीपिका नामक ग्रन्थ में भी जिनेश्वर भगवन्तों ने एक वस्तु या विषय के प्रति चित्त को केन्द्रित करने को ध्यान कहा है। दृढ़ संहनन वाले श्रमण का भी ध्यान अन्तर्मुहूर्त (48 मिनिट के अंदर, अर्थात् दो से लेकर 48 मिनिट में एक समय कम तक का काल अन्तर्मुहूर्त
66 (क) मुहूर्ताऽन्तर्भवेद् ध्यान-मेकार्थे मनसः स्थितिः।
बह्यर्थसङक्रमे दीर्घा-ऽप्यच्छिन्ना ध्यानसन्ततिः।। - अध्यात्मसार, अध्याय 16, श्लोक-2. (ख) योगप्रदीप- 138. (ग) आमुहूर्तात्, तत्त्वार्थसूत्र- 9/28. (घ) सुगमं चैतन्नवरं- ध्यातयो ध्यानानि अन्तमुहूर्त्तमात्रं कालं चित्तस्थिरतालक्षणानि।
- स्थानांगसूत्रवृत्तौ. (ङ) योगशास्त्र- 11/11.
67 (क) तत्त्वार्थाधिगम-भाष्यानुसारिणी। - हरिभद्र व सिद्धसेनवृत्ति 9-27. (ख) ध्यानविचार.
दृढ़संहननस्यापि मुनेरान्तर्मुहूर्तिकम्। ध्यानमाहुरथैकाग्र चिन्तारोधो जिनोत्तमाः ।। छद्मस्थानां तु यद्ध्यानं भवेदान्तर्मुहूर्तिकम्। योगरोधो जिनेन्द्राणां ध्यान कर्मोघघातकम्।। - ध्यानदीपिका, श्लोक- 64-65. मुहूर्तान्तर्मनः स्थैर्य, ध्यान छद्मस्थयोगिनाम्। धर्म्यशुक्लं च तद् द्वेधा, योगरोधस्त्वयोगिनाम्।। - योगशास्त्र, प्रकाश- 4, श्लोक- 115.
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