Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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श्रीजिनचन्द्र सूरीश्वर ने तो 'ध्यानांग' पर सुन्दर प्रकाश डाला है। कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि ने भी 'योगशास्त्र' आदि ग्रन्थों में ध्यान-विषयक सुविस्तृत विवेचन किया है। न्यायाचार्य यशोविजयजी ने 'अध्यात्मसार' में ध्यानशतक का ध्यानाधिकार के रूप में समवतार किया है, साथ ही उन्होंने अध्यात्मोपनिषद में योगवासिष्ठ और तैत्तरीय-उपनिषद् के महत्त्वपूर्ण उद्धरण देकर उनकी जैन-दर्शन के ध्यान के साथ तुलना की है। अध्यात्मयोगी आनंदघनकृत 'चौबीसी' व उनके स्फुट पदों में ध्यान की चर्चा की गई है। योगीराज 'श्रीमद्राजचन्द्र' के साहित्य में भी ध्यान-विषयक चर्चा है। आचार्य रत्नशेखरसूरि ने 'गुणस्थानक क्रमारोह' में ध्यान को बहुत सुन्दर रूप में वर्णित किया है।
इस प्रकार, अनेक विद्वानों ने अपनी लेखनी ध्यान-विषयक विवेचना हेतु चलाई। ध्यान शब्द का सामान्य अर्थ - 'ध्यै चिन्तायाम् – इस सूत्र के अनुसार मन के किसी विषय में लीन होने की दशा ध्यान है। ध्यान आना, अर्थात् अनुभूत तथ्यों की स्मृति होना- यह ध्यान शब्द का सामान्य अर्थ है।° व्युत्पत्ति की दृष्टि से ध्यान शब्द का अर्थ है – जिसके द्वारा किसी के स्वरूप का चिन्तन किया जाता है, वह ध्यान है।
ध्यान शब्द का विशेष अर्थ -.. अन्तर्मुहूर्त्तकाल पर्यन्त किसी विषय पर चित्त की जो एकाग्रता होती है, उसी को ध्यान कहा जाता है। निर्विषय मन ही ध्यान है।13
'प्रस्तुत सन्दर्भ 'झाणं; ध्यान- स्वरूप अने साधना' भाग- 1 पुस्तक की भूमिका से उद्धृत. ' (क) आवश्यकचूर्णि, अध्याय 4 (ख) सिद्ध हेमचन्द्रतत्त्वानुशासनं धातु नं. (ग) ध्यायते चिन्त्यते
वस्त्वनेन, ध्यर्तिवा ध्यानम्। - प्रवचनसारोद्धार, द्वार 6. 10 नालन्दा विशाल शब्दसागर, सं. - श्रीनवलजी,, पृ. 655. " (क) (ध्यै + ल्यूट) "ज्ञानात् ध्यान विशिष्यते।" संस्कृत शब्दार्थ, कौस्तुभ, पृ. 575. (ख) "ध्यै – ध्यायते चिन्त्यतेऽनेन तत्त्वमिति ध्यानम्, एकाग्रचित्त निरोधः इत्यर्थः |ध्यै चिन्तायाम् ।
- अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग 4, पृ. 1662. (ग) “ध्यायते वस्तुअनेनेति ध्यानम्।” – ध्यान योगरूप और दर्शन, सं.
- डॉ नरेंद्र भानावत, पृ. 30.
(क) प्रवचनसारोद्धार, द्वार 6. (ख) अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग 4, पृ. 1661. "ध्यानं निर्विषयं ममः। - जैनभारती से उद्धृत, वर्ष 58, अंक 2, पृ. 47.
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