Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
View full book text
________________
झाझयण की रचना के लगभग एक सौ अथवा एक सौ पच्चीस वर्ष के पश्चात् लिखी जा चुकी थी ।
प्रस्तुत ध्यानाध्ययन (ध्यानशतक) अर्द्धमागधी - आगम पर आधारित है और आगम पर आधारित होने के कारण इसमें उन सभी विषयों का समावेश हुआ है, जो ठाणांग आदि आगम-ग्रन्थों में वर्णित हैं। इसके साथ-साथ, इसमें निर्युक्ति की शैली और उनकी ध्यान-सम्बन्धी अवधारणाओं का भी समावेश हुआ है । हरिभद्र ने अपनी टीका में भी उन आगमिक - आधारों को तो स्पष्ट किया है, लेकिन इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी टीका में नियुक्ति आदि के भावों को भी ग्रहण किया है ।
हरिभद्र की विशेषता यह है कि उन्होंने अपने को न केवल मूल आगमों तक सीमित रखा, अपितु उनकी निर्युक्ति, भाष्य और चूर्णि को भी आधार बनाकर यह टीका लिखी है। जहां मूल ग्रन्थ में मात्र मूल आगमों और उनकी नियुक्ति को आधार बनाया गया है, वहीं टीका में नियुक्ति के साथ-साथ भाष्य और चूर्णि को भी आधार बनाया है और इस प्रकार मूल ग्रन्थ की अपेक्षा टीका में शब्दों के अर्थ का स्पष्टीकरण विस्तार से और सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति को आसानी से समझ में आ जाए, इतनी सरलता से हुआ है। इस प्रकार, इसमें जनसाधारण का ध्यान रखा गया है । मात्र यही नहीं, इसमें शब्द के सामान्य अर्थ के साथ-साथ उसके तात्पर्य को भी स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है । टीका में अनेक स्थलों पर 'इति गम्यते इति शेषः प्रकरणाद् इति गम्यते' आदि शब्दों का प्रयोग करके ग्रन्थ के वर्णित विषय के मूल हार्द को प्रमाण सहित अधिक स्पष्टता से समझाने का प्रयत्न किया है 1
"
Jain Education International
63
इस टीका की एक अन्य विशेषता इसका मध्यम आकार का होना है। यह न तो अति संक्षिप्त है और न ही अति विस्तृत । यह मध्यम आकार की टीका है, इसी कारण से इसे जन-साधारण को भी समझने में अति कठिनाई नहीं होती है । यद्यपि टीका की भाषा संस्कृत है, फिर भी इसमें प्रयुक्त संस्कृत इतनी सरल और सहज है कि सामान्य रूप से संस्कृत का सामान्य ज्ञाता भी उसे सरलता से समझ सकता है। टीकाकार ने अपने कथ्य को प्रमाण - पुरस्सर सिद्ध करने हेतु अनेक स्थलों पर अपने से प्राचीन आचार्यों के ग्रन्थ के सन्दर्भ भी दिए हैं। इसी प्रकार, यदि इसकी किसी गाथा - विशेष के अर्थ के सम्बन्ध में टीकाकार के सामने विद्वानों में जो भी मतभेद थे, टीका में टीकाकार ने उनका भी स्पष्टीकरण करने का प्रयत्न किया है। टीकाकार ने उनके समक्ष मूल
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org