Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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ये दोनों जन्मस्थल भिन्न-भिन्न नाम वाले होने पर भी उनमें विशेष विरोध जैसी कोई बात नहीं लगती । 'पिवंगुई - ऐसा मूल नाम सही है या विकृत रूप में प्राप्त हुआ, इस बात का निर्णय करना कठिन है, परन्तु उनके संलग्न जो 'बंभपुणी' लिखा गया है, वह तो ब्रह्मपुरी का ही विकृत रूप है। हो सकता है कि चित्तौड़ (चित्रकूट) के आसपास इस नाम का कोई देहात, कस्बा, अथवा चित्तौड़ नगर का ही एक भाग रहा होगा, जो चित्तौड़ की सीमा के अन्तर्गत आता हो। इस हेतु उत्तरवर्ती ग्रन्थों में अति विख्यात चित्तौड़ का उल्लेख तो रह गया, किन्तु 'ब्रह्मपुरी' नाम गौण बन गया हो। बाद में किसी विद्वान् का ध्यान उस ओर केन्द्रित नहीं हुआ ।
चित्तौड़ के विकास के पूर्व उत्तर- दिशा में करीब पांच से छह मील दूर शिबि जनपद की राजधानी 'मध्यमिका' नगरी प्रसिद्ध थी, जो वर्त्तमान में सिर्फ 'नगरी' के नाम से जानी जाती है। यह नगरी प्राचीन है तथा सत्ता, ज्ञान और धर्मस्थान का मुख्य केन्द्र रही है, इसलिए तो विरोधी पक्षों द्वारा यदा-कदा आक्रमित होती रही है। इसका सर्वप्रथम उल्लेख महाभाष्यकार पतंजलि (ईस्वी पूर्व दूसरी शती) ने अपने भाष्य में किया । " मध्यमिका तीनों परम्पराओं (वैदिक, बौद्ध तथा जैन) का एक विशिष्ट क्षेत्र था। 7 निरन्तर आक्रमणों के कारण जब वह स्थान असुरक्षित हुआ, तब चित्रांगद नाम वाले एक मौर्य राजा ने मध्यमिका को अपने राज्य की राजधानी बनाया। पहाड़ पर स्थित होने से
पाटन संघवी के पांडे के जैनभण्डार की विसं. 1497 में लिखित ताड़पत्रीय पोथी ।
64 अधोलिखित प्राचीन ग्रन्थों में जन्मस्थान के रूप में चित्तौड़ (चित्रकूट) का उल्लेख मिलता है।
ग. प्रभाचन्द्रसूरिकृत 'प्रभावकचरित्र' नवम शृंग, विसं. 1334.
घ. राजशेखरसूरिकृत 'प्रबोधकोष' अपरनाम 'चतुर्विंशतिप्रबन्ध', विसं. 1405.
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'नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष 62 अंक 2-3 में प्रकाशित डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल का लेख 'राजस्थान में भागवतधर्म का प्राचीन केन्द्र, पृ. 116-121.
क. हरिभद्रसूरिकृत 'उपदेशपद' की श्रीमुनिचन्द्रसूरिटीका, विसं. 1174.
ख. 'गणधरसार्धशतक' की सुमतिगणिकृत वृत्ति, विसं. 1295.
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अरुणाद् यवनो मध्यमिकाम् - 3 / 2 / 111.
कल्पसूत्र - स्थविरावली,, उसमें मज्झिमिआ - शाखा का उल्लेख है। वह मध्यमिका- नगरी के आधार पर उस नाम से प्रसिद्ध हुई ।
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चित्रकूट की स्थापना चित्रांगद ने की थी ऐसी कथा 'कुमारपालचरित्रसंग्रह में पृष्ठ 5 और पृष्ठ 47-49 पर आती है। यह चित्रांगद मौर्यवंश का था, ऐसा नीचे के आधारों से निश्चित किया जा सकता है
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क. श्री हीरानंद शास्त्री - ५। हनपकम जव म्समचींदजं दृ जीपे वनसकवू जींज डमूंत दक जीम 'नततवनदकपदह जतंबजे मतमीमसक इल डंनतलं कलदेंजल कनतपदह जीम मपहीजी
बमदजनतल जिमत बेतपेजए पृ. 07, 'ख्यातों में भी चित्रांगद का मौर्य के रूप में निर्देश मिलता है।
संकरो नाम भटो, तस्स गंगा नाम भट्टिणी । तीसे हरिभद्दो नाम पंडिओ पुत्तो ।
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